मुंबई। अंडरवर्ल्ड से राजनीति तक सफर करने वाला कुख्यात डॉन अरुण गवली उर्फ ‘डैडी’ आखिरकार 18 साल बाद जेल से बाहर आ गया है। सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद बुधवार सुबह गवली को नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया।
गवली शिवसेना के नगरसेवक कमलाकर जामसंडेकर की हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था। वह साल 2007 से सलाखों के पीछे था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने उसकी उम्र और लंबे समय से जेल में बंद रहने को देखते हुए जमानत दी।
सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत
पिछले हफ्ते जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने गवली की जमानत याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि आरोपी अब तक करीब 17 साल 3 महीने से जेल में है और 73 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है। साथ ही उसकी अपील अभी तक लंबित है। इन तथ्यों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जमानत मंजूर कर दी।
मामले की अगली सुनवाई फरवरी 2026 में होगी।
जामसंडेकर हत्याकांड क्या था?
2 मार्च 2007 को मुंबई के घाटकोपर इलाके में शिवसेना नगरसेवक कमलाकर जामसंडेकर की हत्या कर दी गई थी। वे रात को अपने घर पर टीवी देख रहे थे, तभी कुछ हमलावर घुसे और अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
इस वारदात के पीछे अरुण गवली का नाम सामने आया। दरअसल, हत्या से कुछ दिन पहले मुंबई महानगरपालिका चुनाव हुए थे। उस चुनाव में जामसंडेकर ने गवली समर्थित उम्मीदवार अजित राणे को मात्र 367 वोटों से हराया था। माना जाता है कि इसी रंजिश में हत्या कराई गई थी।
उम्रकैद की सजा और जेल जीवन
इस मामले में गवली समेत 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, जबकि तीन आरोपी सबूतों के अभाव में बरी हो गए थे।
गवली को 2006 में गिरफ्तार किया गया था और तभी से वह जेल में था। हालांकि, 18 साल के दौरान वह कई बार पैरोल पर बाहर भी आया।
नागपुर जेल में रहते हुए भी गवली का नाम सुर्खियों में बना रहा। उसकी छवि एक ऐसे माफिया सरगना की रही जिसने दगड़ी चॉल से अंडरवर्ल्ड पर राज किया और बाद में राजनीति में भी कदम रखा।
राजनीति से भी रहा गहरा नाता
अरुण गवली केवल अपराध की दुनिया का ही बड़ा नाम नहीं रहा, बल्कि राजनीति में भी उसने अपनी पैठ बनाई। साल 2004 से 2009 के बीच गवली महाराष्ट्र विधानसभा का सदस्य रहा। दगड़ी चॉल उसका गढ़ माना जाता है।
गवली की बेटी गीता गवली भी राजनीति में सक्रिय हैं। ऐसे में उसकी रिहाई ऐसे समय पर हुई है जब मुंबई में जल्द ही बीएमसी चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है। जानकारों का मानना है कि गवली की रिहाई का असर मुंबई की स्थानीय राजनीति पर जरूर देखने को मिल सकता है।
पहले भी मिली थी एक मामले में जमानत
गौरतलब है कि गवली को एक अन्य मामले में पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी थी। अब जामसंडेकर हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद उसकी जेल से रिहाई का रास्ता साफ हो गया।
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अरुण गवली की जेल से रिहाई ने महाराष्ट्र की राजनीति और अंडरवर्ल्ड दोनों में हलचल पैदा कर दी है। एक तरफ उसका अतीत अपराध की दुनिया से जुड़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर राजनीति में उसकी सक्रियता और परिवार की मौजूदगी भविष्य में नए समीकरण खड़े कर सकती है। अब देखने वाली बात होगी कि 18 साल बाद बाहर आए ‘डैडी’ की भूमिका किस तरह बदलती है और इसका असर मुंबई की सियासत पर कितना पड़ता है।