चीन एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश को लेकर अपनी पुरानी हरकतों पर उतर आया है। उसने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश की कुछ जगहों को नए नाम देकर उन्हें अपना बताने की कोशिश की है। लेकिन भारत ने साफ शब्दों में कह दिया है कि ये “बेकार की कवायद” है और अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा।
क्या है मामला?
चीन ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश की कुछ जगहों के लिए नए नाम गढ़े हैं। ये पहला मौका नहीं है जब चीन ने ऐसा किया हो:
- 2017: 6 जगहों के नाम बदले
- 2021: 15 स्थानों की लिस्ट जारी की
- 2023: 11 जगहों का नाम बदला
- 2024: 30 नए नाम गढ़े
अब एक बार फिर चीन ने उसी तरह की कोशिश दोहराई है। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस पर तीखा बयान देते हुए कहा:
“चीन भले ही कितने भी नाम गढ़ ले, ये सब व्यर्थ की कोशिशें हैं। नाम बदलने से हकीकत नहीं बदलती। अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है और हमेशा रहेगा।”
उन्होंने चीन की तुलना उस बच्चे से की जो अपने खिलौनों के मनगढ़ंत नाम रखता है।
चीन की चालबाज़ी का असली मकसद क्या है?
चीन अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिणी तिब्बत” बताकर उस पर अधिकार जताता है। लेकिन भारत हर बार इसे सिरे से खारिज करता आया है। नाम बदलना, नक्शा बदलना या झूठी दावेदारी—ये सब चीन की रणनीति का हिस्सा हैं, ताकि भ्रम फैलाया जा सके और भू-राजनीतिक लाभ लिया जा सके।

भारत-पाक तनाव के बीच चीन की हरकत
जब भारत पाकिस्तान समर्थित आतंकियों पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी कड़ी कार्रवाई कर रहा है और सीमा पर चौकसी बढ़ा रहा है, चीन इस अशांति का फायदा उठाकर अपना एजेंडा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। हाल ही में:
- पाकिस्तानी आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में 26 निर्दोष लोगों की हत्या की।
- भारत ने जवाब में आतंकी ठिकानों को तबाह किया।
- पाकिस्तान ने ड्रोन हमलों के जरिए जवाबी कार्रवाई की, लेकिन भारतीय सेना ने हर बार उन्हें मार गिराया।
- चीन ने इसी बीच पाकिस्तान को चुपचाप हथियारों की आपूर्ति की।
इस स्थिति का फायदा उठाकर चीन ने अरुणाचल का मुद्दा फिर छेड़ दिया, लेकिन भारत ने हर मोर्चे पर मुंहतोड़ जवाब दिया है।
भारत का रुख साफ है:
- कूटनीतिक स्तर पर दो टूक संदेश
- सीमा पर सैन्य ताकत और सतर्कता
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन की हरकतों को उजागर करना
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चीन की नाम बदलने की ये कवायद “सिर्फ एक राजनीतिक नाटक” है, जिससे वह हकीकत को नहीं बदल सकता। भारत ने साफ कर दिया है कि अरुणाचल न केवल संवैधानिक रूप से भारत का हिस्सा है, बल्कि वह हमारी संस्कृति, पहचान और आत्मसम्मान का प्रतीक है।
चीन को भी अब समझ लेना चाहिए — नाम बदलने से नक्शा नहीं बदलता।