पाकिस्तान और चीन की दोस्ती को अक्सर “आयरन ब्रदरहुड” कहा जाता है। दोनों देशों ने दशकों से रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का दावा किया है। लेकिन जब बात अरबों डॉलर के निवेश और आर्थिक जोखिम की आती है, तो यह दोस्ती अलग रंग दिखाती है। इसका ताज़ा उदाहरण है, चीन का पाकिस्तान के सबसे बड़े रेल प्रोजेक्ट ML-1 से पीछे हटना।
करीब 1,800 किलोमीटर लंबा यह प्रोजेक्ट कराची से पेशावर तक रेलवे नेटवर्क को अपग्रेड करने का सपना था। इसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का “फ्लैगशिप प्रोजेक्ट” माना गया था। लेकिन लगभग 10 साल की बातचीत और आश्वासन के बाद भी जब वित्तीय स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई, तो चीन ने धीरे-धीरे कदम पीछे खींच लिए। अब पाकिस्तान इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) की तरफ देख रहा है।
क्यों पीछे हटा चीन?
चीन का फैसला अचानक नहीं था। पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था, बढ़ते कर्ज और भुगतान क्षमता पर संदेह ने बीजिंग को सोचने पर मजबूर कर दिया। रिपोर्टों के मुताबिक, पाकिस्तान का बिजली क्षेत्र पहले से ही चीनी कंपनियों के बकाया भुगतानों से जूझ रहा है। अरबों डॉलर फंसे होने के बाद चीन अब और जोखिम लेने के मूड में नहीं दिख रहा।
CPEC की शुरुआत में चीन ने लगभग 60 अरब डॉलर (करीब 5.28 लाख करोड़ रुपये) के निवेश का वादा किया था। इसमें सड़कें, ऊर्जा प्रोजेक्ट और बंदरगाहों का विकास शामिल था। शुरुआती दौर में कई योजनाएं पूरी भी हुईं। लेकिन अब हालात अलग हैं—चीन उन देशों से दूरी बना रहा है, जहां से निवेश वापसी की संभावना धुंधली है।
पाकिस्तान का रुख ADB की ओर
CPEC प्रोजेक्ट्स में पहली बार ऐसा हुआ है कि पाकिस्तान किसी बहुपक्षीय वित्तीय संस्था की मदद ले रहा है। एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) को ML-1 की कमान सौंपने का संकेत इस बात का प्रमाण है कि अब पाकिस्तान अपनी आर्थिक चुनौतियों से अकेले जूझने की स्थिति में नहीं है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बदलाव सिर्फ वित्तीय ही नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी देता है। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती का ढोल लंबे समय से पीटा जाता रहा है, लेकिन जब वित्तीय जोखिम गहरा हुआ, तो चीन ने कदम पीछे खींचने में देर नहीं लगाई।
CPEC की धीमी होती रफ्तार
2015 से 2019 के बीच CPEC प्रोजेक्ट्स तेजी से आगे बढ़े। इस दौरान कई राजमार्ग, पावर प्लांट और बंदरगाह बनाए गए। ग्वादर ईस्ट बे एक्सप्रेसवे 2022 में पूरा हुआ, जिसे आखिरी बड़ा प्रोजेक्ट माना गया। इसके बाद से नई योजनाओं की गति थम सी गई है।
विश्लेषक कहते हैं कि चीन के हटने से ML-1 पर बड़ा असर पड़ेगा। इससे पहले ही चीनी कंपनियां पाकिस्तान से बकाया रकम न मिलने के कारण परेशान थीं। इसने निवेशकों के भरोसे को और कमजोर किया है।
दोस्ती बनाम आर्थिक यथार्थ
चीन और पाकिस्तान अक्सर कहते हैं कि उनकी दोस्ती हर परिस्थिति में कायम रहेगी। लेकिन ML-1 के घटनाक्रम ने दिखा दिया कि “दोस्ती अपनी जगह है, लेकिन पैसा अपनी जगह है।”
बीजिंग का यह कदम साफ संकेत देता है कि अब चीन अपने निवेश को लेकर कहीं ज्यादा सतर्क हो चुका है।
यह भी पढ़िए – CLT10 नोएडा: क्रिकेट के मंच पर चमका विंध्य का सितारा प्रिंस वर्मा
ML-1 से चीन के बाहर होने का असर पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और CPEC की भविष्य की गति, दोनों पर पड़ेगा। पाकिस्तान अब ADB के सहारे प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वही रफ्तार पकड़ पाएगा, जिसकी कल्पना 2015 में CPEC लॉन्च करते समय की गई थी?
एक बात तय है—CPEC की चमक अब पहले जैसी नहीं रही, और चीन की प्राथमिकताएं भी बदल चुकी हैं।