नई दिल्ली।
भारत और अमेरिका के रिश्तों में कई बार तनाव आया है, लेकिन भारत ने हर बार मजबूती से अपनी स्थिति स्पष्ट की है। अमेरिका ने जब-जब दबाव बनाया, भारत ने तब-तब अपने आत्मसम्मान और राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी है। ताजा मामला अमेरिका द्वारा भारत से आने वाले सामान पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह टैरिफ रूस से तेल खरीदने के कारण भारत पर “दंडात्मक कार्रवाई” के रूप में लगाया है। अमेरिका लंबे समय से चाहता था कि भारत रूस के साथ अपना व्यापार घटाए, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि उसकी विदेश नीति किसी के दबाव से नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार तय होती है।
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने भारत को झुकाने की कोशिश की हो। इतिहास गवाह है कि भारत ने ऐसे हर दबाव का डटकर मुकाबला किया है।
1965: गेहूं रोकने की धमकी
1965 के भारत-पाक युद्ध के समय भारत गंभीर खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था। अमेरिका उस वक्त “PL-480” स्कीम के तहत भारत को गेहूं भेजता था। युद्ध के चलते अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाया कि वह लड़ाई रोक दे, नहीं तो गेहूं भेजना बंद कर दिया जाएगा।
तब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने साफ कहा – “अगर गेहूं नहीं देंगे तो मत दीजिए, लेकिन हम अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेंगे।” इसी दौरान उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया और जनता से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की।
1971: अमेरिका खड़ा हुआ पाकिस्तान के साथ
भारत-पाक बांग्लादेश युद्ध के समय भी अमेरिका पाकिस्तान के पक्ष में था। अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए अपना नौसैनिक बेड़ा हिंद महासागर में भेजा। लेकिन भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किसी भी प्रकार का दबाव स्वीकार नहीं किया।

रूस के साथ हुई संधि ने भारत को भरोसा दिया और भारत ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश को आज़ादी दिलाई। यह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक और सैन्य सफलता थी।
1974: परमाणु परीक्षण पर विरोध
1974 में भारत ने जब अपना पहला परमाणु परीक्षण “पोखरण-1” किया, तब अमेरिका ने फिर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की। अमेरिका ने परमाणु तकनीक, ईंधन और आर्थिक सहायता पर रोक लगा दी।
लेकिन इंदिरा गांधी पीछे नहीं हटीं। उन्होंने स्वदेशी तकनीक को आगे बढ़ाया और भारत का परमाणु कार्यक्रम जारी रखा।
1998: फिर से प्रतिबंध, फिर से मजबूती
1998 में भारत ने पोखरण-2 परमाणु परीक्षण किया। अमेरिका ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और भारत पर व्यापक प्रतिबंध लगा दिए – हथियारों की बिक्री से लेकर आर्थिक मदद तक।
लेकिन तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका को दो टूक कह दिया – “हम अपने देश की सुरक्षा से समझौता नहीं करेंगे।” उन्होंने साफ किया कि जब हमारे पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान परमाणु शक्ति हैं, तो भारत को भी यह क्षमता चाहिए।

कुछ ही महीनों बाद अमेरिका को समझ आया कि भारत को अलग-थलग करना संभव नहीं। 1999 में अधिकतर प्रतिबंध हटा लिए गए और 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए।
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भारत का रुख साफ – राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
इतिहास गवाह है कि भारत कभी किसी दबाव में नहीं झुका है। आज भी जब अमेरिका भारत पर आर्थिक दबाव डालने की कोशिश कर रहा है, भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी नीति अपने देश के हितों के अनुसार तय करेगा।
भारत ने दुनिया को यह संदेश दे दिया है – हम दोस्ती चाहते हैं, लेकिन शर्तों पर नहीं।