डिंडोरी, मध्यप्रदेश:
राज्य सरकार की बहुप्रचारित योजना “अमृत सरोवर” का उद्देश्य था गांवों में जल संरक्षण को बढ़ावा देना, सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराना और मवेशियों को पीने का पानी मुहैया कराना। लेकिन डिंडोरी जिले के अमरपुर विकासखंड की ग्राम पंचायत रमपुरी में यह योजना भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ती नजर आ रही है।
वर्ष 2022-23 में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग द्वारा रमपुरी गांव में अमृत सरोवर के निर्माण के लिए 40 लाख 75 हजार रुपये की लागत स्वीकृत की गई थी। लेकिन 2025 की इस भीषण गर्मी में वह सरोवर पूरी तरह सूखा पड़ा है। न उसमें एक बूंद पानी है, न ही ग्रामीणों या मवेशियों को उससे कोई लाभ मिल पाया है।
सरोवर तो बना, पर पानी कहां गया?
रमपुरी गांव की जनसंख्या भले ही 410 हो, लेकिन इसका क्षेत्रफल बड़ा है और पशुपालन गांव की आजीविका का अहम हिस्सा है। गांव के किसान और ग्रामीण बताते हैं कि जब इस योजना की शुरुआत हुई, तो उन्हें बड़ी उम्मीद थी कि अब जल संकट से राहत मिलेगी।
लेकिन सरोवर की लोकेशन ही ऐसी जगह पर बनाई गई, जहां भू-जल स्तर पकड़ने की क्षमता ही नहीं थी। न कोई वैज्ञानिक सर्वेक्षण हुआ, न भौगोलिक परिस्थितियों की जांच। ऐसे में सरोवर केवल कागज़ों में बना और ज़मीन पर बस एक खाली खाई रह गई।
ग्रामीणों की नाराज़गी और मांग
गांव के ही निवासी बलराम बताते हैं,
“बनाते वक्त कहा गया था कि अब गांव में पानी की कमी नहीं रहेगी। लेकिन आज हालत ये है कि सरोवर में मवेशियों के लिए भी एक बूंद पानी नहीं है। सरकार का पैसा बर्बाद हुआ है, और जांच होनी चाहिए।”
यह सिर्फ बलराम की आवाज़ नहीं है। गांव के कई अन्य ग्रामीण भी यही सवाल उठा रहे हैं कि जब 40 लाख रुपये की लागत से योजना बनी, तो उसका परिणाम क्यों नहीं दिख रहा?
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
यह सवाल उठाना लाज़मी है कि क्या यह योजना सिर्फ फाइलों और कागज़ों में सफल दिखा दी गई? क्या जिम्मेदार विभाग ने बिना समुचित भू-गर्भीय सर्वेक्षण के काम शुरू करवा दिया? यह भी देखा गया है कि योजना का क्रियान्वयन ठेकेदारों के भरोसे छोड़ दिया गया, जिन्होंने महज खानापूर्ति कर ली।
स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे मामलों में जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक सरकारी योजनाएं आम जनता तक लाभ पहुंचाने में विफल ही रहेंगी।
प्रशासन की चुप्पी
अब तक इस मुद्दे पर डिंडोरी जिला प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। न ही जांच के आदेश की कोई खबर है। ऐसे में ग्रामीणों में नाराज़गी बढ़ती जा रही है।
क्या होगी अगली कार्रवाई?
अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस मामले की निष्पक्ष जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों पर कार्रवाई करेगा? या फिर यह भी बाकी कई योजनाओं की तरह भूल की झोली में डाल दिया जाएगा, जहां पैसा खर्च होता है और नतीजा शून्य रहता है?
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“अमृत सरोवर” जैसी योजनाएं केवल सरकारी उपलब्धियों की सूची बढ़ाने के लिए नहीं, ग्रामीण भारत की असली ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनी हैं। जब ऐसी योजनाएं लापरवाही या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती हैं, तो सिर्फ पैसा नहीं, लोगों का भरोसा भी सूख जाता है।
अब सरकार को सोचना होगा —
पानी नहीं आया तो जवाब कौन देगा?