नई दिल्ली। गरीबों और निम्न आय वर्ग के नागरिकों को पांच लाख रुपये तक का निशुल्क इलाज मुहैया कराने वाली देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना “आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY)” अब खुद अपने अस्तित्व की चुनौती से जूझती नजर आ रही है। एक ओर जहां योजना के तहत अब तक 8.59 करोड़ मरीजों का इलाज हो चुका है, वहीं दूसरी ओर पैनल में शामिल अस्पतालों की संख्या में गिरावट गंभीर चिंता का विषय बन गई है।
पैनल में जुड़ने की रफ्तार घटी, अस्पताल हो रहे पीछे
नेशनल हेल्थ अथॉरिटी (NHA) द्वारा जारी ताजा आंकड़े बताते हैं कि 2024 में हर महीने औसतन 316 अस्पताल AB-PMJAY से जुड़ रहे थे, जो 2025 में घटकर मात्र 111 रह गए हैं। अप्रैल 2025 तक सिर्फ 55 नए अस्पताल पैनल में जोड़े गए, जबकि मई 20 तक महज़ एक अस्पताल ही जुड़ा है।
कुल मिलाकर इस समय 31,916 अस्पताल योजना के अंतर्गत कार्यरत हैं, जिनमें से 17,440 सरकारी और 14,476 निजी अस्पताल हैं।
प्राइवेट अस्पताल क्यों बना रहे दूरी?
विशेषज्ञों और स्वास्थ्य संघों का मानना है कि कम पैकेज दरें और भुगतान में देरी जैसी समस्याओं की वजह से खासतौर पर प्राइवेट और कॉर्पोरेट अस्पताल योजना से दूरी बना रहे हैं। इतना ही नहीं, 2018 से अब तक 609 प्राइवेट अस्पतालों ने इस योजना से खुद को अलग कर लिया है।
एक निजी अस्पताल चेन के CEO ने साफ कहा, “जो पैकेज दरें तय की गई हैं, वे हमारी इनपुट कॉस्ट से भी कम हैं। ऐसे में हम अपने संसाधनों और सेवाओं की गुणवत्ता से समझौता नहीं कर सकते।”
IMA ने भी जताई चिंता, मांगी CGHS दरें
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने भी इस मुद्दे पर सरकार से स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि योजना को टिकाऊ बनाना है, तो पैकेज रेट्स में सुधार करना ही होगा। IMA के अनुसार, इन दरों को कम से कम CGHS (केंद्रीय सरकारी स्वास्थ्य योजना) स्तर तक लाया जाए।

सरकारी पक्ष – “नई प्रणाली में माइग्रेशन चल रहा है”
NHA के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अस्पतालों को पैनल में जोड़ने की प्रक्रिया जारी है। उनका कहना है कि कई नए अस्पतालों की जानकारी नई प्रणाली में माइग्रेट की जा रही है, इसलिए संभव है कि सभी अपडेट डैशबोर्ड पर न दिख रहे हों।
मरीजों की चिंता – कागज़ों में इलाज, ज़मीन पर परेशानी
हालांकि सरकार ने दावा किया है कि पिछले 30 दिनों में लगभग 20 लाख लोग योजना के तहत इलाज करा चुके हैं, लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट्स और मरीजों की व्यथा एक अलग कहानी बयां करती हैं।
ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों में योजना कार्डधारकों को अस्पताल से लौटाया जाना, विशेषज्ञ डॉक्टरों की अनुपलब्धता, और प्राथमिक सेवाओं के लिए भी भुगतान की मांग अब आम शिकायत बन चुकी है।
दिल्ली सबसे नया सदस्य, लेकिन शर्तों के साथ
दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश में हाल ही में योजना लागू हुई है, लेकिन यहां के निजी अस्पताल भी तय शर्तों पर ही इसमें भागीदारी दिखा रहे हैं। जब तक वित्तीय मॉडल व्यावहारिक नहीं होगा, तब तक बड़े अस्पताल इस योजना में खुद को झोंकने से हिचकिचाते रहेंगे।
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मुफ्त इलाज का सपना, लेकिन बिना अस्पताल के कैसे?
आयुष्मान भारत योजना एक महत्वाकांक्षी और ऐतिहासिक कदम है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में अगर अस्पतालों का समर्थन नहीं मिला, तो यह सिर्फ एक कागज़ी योजना बनकर रह जाएगी।
सरकार को चाहिए कि वह स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और अस्पतालों के प्रतिनिधियों से खुली बातचीत कर पैकेज दरों की समीक्षा करे, भुगतान प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए, और योजना को अधिक व्यावहारिक तथा आकर्षक बनाए।
क्योंकि सवाल सिर्फ इलाज का नहीं, भरोसे और जीवन के अधिकार का है।