भोपाल।
मध्य प्रदेश कांग्रेस ने शनिवार को 71 जिलाध्यक्षों की सूची जारी की, लेकिन इसके बाद पार्टी के भीतर तीखी नाराज़गी और विरोध के सुर तेज हो गए हैं। नई सूची में पार्टी ने सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश की है। इसमें 10 अनुसूचित जाति, 8 अनुसूचित जनजाति, 11 ओबीसी, 3 अल्पसंख्यक और 4 महिलाओं को जिलाध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया है। करीब 50 प्रतिशत आरक्षित वर्ग को शामिल कर कांग्रेस ने संतुलन बैठाने की कोशिश की, लेकिन यह दांव पूरी तरह सफल होता नहीं दिख रहा।
वरिष्ठ नेता ने दिया त्यागपत्र
रीवा जिले के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अशफाक अहमद ने नई सूची में अल्पसंख्यकों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है। अशफाक अहमद कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता, अल्पसंख्यक विभाग के पूर्व उपाध्यक्ष और प्रदेश सचिव रह चुके हैं। वे कांग्रेस कमेटी के राजनीतिक विभाग के सदस्य भी थे और लंबे समय से पार्टी संगठन में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं।
अहमद का कहना है कि सूची में अल्पसंख्यक समाज को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। उनका यह कदम न केवल रीवा बल्कि आसपास के जिलों में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
सूची से असंतोष
कांग्रेस ने इस सूची में 6 मौजूदा विधायक, 11 पूर्व विधायक और 3 पूर्व मंत्रियों—ओमकार सिंह मरकाम, प्रियव्रत सिंह और जयवर्धन सिंह—को जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है। इसके अलावा 21 पुराने चेहरों पर फिर से भरोसा जताया गया है। बताया जा रहा है कि करीब 15 नाम ऐसे हैं जिन्हें केवल आब्जर्वर की रिपोर्ट के आधार पर जिलाध्यक्ष बनाया गया है।
इसी को लेकर कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल रहा है। कई जिलों में स्थानीय नेताओं का कहना है कि बड़े नेताओं की सिफारिशों को नजरअंदाज किया गया और केवल आब्जर्वर की राय को तवज्जो दी गई।

विरोध और पुतला दहन
रीवा में अशफाक अहमद के त्यागपत्र के बाद असंतोष खुलकर सामने आ गया है। वहीं गुना में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे और विधायक जयवर्धन सिंह को जिला अध्यक्ष बनाए जाने पर भी विरोध हो रहा है। स्थानीय नेताओं ने पीसीसी चीफ जीतू पटवारी का पुतला जलाकर नाराजगी जाहिर की।
अल्पसंख्यकों को सीमित जिम्मेदारी
रीवा जिले में जहां अशफाक अहमद को दरकिनार किया गया, वहीं कांग्रेस ने पन्ना और सतना सिटी में अल्पसंख्यक नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया है। पन्ना में अनीश खान और सतना सिटी में आरिफ इकबाल सिद्दीक को जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि स्थानीय नेताओं का कहना है कि यह संतुलन अपर्याप्त है और कांग्रेस को व्यापक स्तर पर अल्पसंख्यक समाज को भरोसे में लेना चाहिए।
चुनावी तैयारी और चुनौतियां
कांग्रेस ने यह सूची विधानसभा चुनाव से तीन साल पहले जारी की है। पार्टी का लक्ष्य 2028 में प्रदेश की सत्ता में वापसी करना है। जिलाध्यक्षों को संगठन मजबूत करने और बूथ स्तर तक पहुंच बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन सूची पर उठ रहे सवाल और आंतरिक असंतोष कांग्रेस के लिए चुनौती साबित हो सकते हैं।
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पार्टी फिलहाल आधिकारिक तौर पर इस विवाद पर चुप्पी साधे हुए है, लेकिन अंदरखाने में नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी से हालात पर नजर रखी जा रही है। अब देखना होगा कि कांग्रेस इस असंतोष को शांत कर पाती है या विरोध का यह सिलसिला और तेज़ होता है।