सीहोर (मध्य प्रदेश)।
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित कुबेरेश्वर धाम में चल रहे रूद्राक्ष महोत्सव और शिव पुराण कथा के दौरान बीते तीन दिनों में 7 श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है। लाखों की संख्या में उमड़ती श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच न प्रशासन पूरी तरह जागा और न ही आयोजन समिति—और न ही आयोजनकर्ता पंडित प्रदीप मिश्रा ने इन मौतों को लेकर कोई गंभीर जिम्मेदारी ली।
श्रद्धा के इस मेले में हर साल भीड़ का आलम ऐसा होता है कि सीहोर ही नहीं, आसपास के कई शहरों की सड़कों पर घंटों लंबा ट्रैफिक जाम लग जाता है। इस बार भी 5 अगस्त से शुरू हुए आयोजन में हजारों की उम्मीद में लाखों श्रद्धालु उमड़ पड़े। नतीजा—भोजन, पानी, स्वास्थ्य सेवाएं और आपात व्यवस्थाएं सभी धराशायी होती नजर आईं।
तीन दिन, सात मौतें
8 अगस्त दोपहर तक कुबेरेश्वर धाम में कुल 7 श्रद्धालुओं की मौत की पुष्टि हो चुकी है। इनमें जबलपुर के 25 वर्षीय गोलू काष्टा, 55 वर्षीय मंजू (गुजरात) और विजेंद्र स्वरूप के नाम प्रमुख हैं। इनमें से कुछ की मौत भीषण गर्मी, थकान और भूख-प्यास से हुई, तो कुछ भगदड़ जैसी स्थिति में दबने और दम घुटने से।
स्थानीय लोगों और प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि आयोजन स्थल पर न पर्याप्त छांव, न पीने का पानी और न प्राथमिक चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएं मौजूद थीं। लोग घंटों लाइन में खड़े रहे, कई बेहोश हुए, और कुछ की जान भी चली गई।
क्या यह पहली बार हुआ है?
नहीं।
2023 में भी एक महिला की मौत इसी आयोजन के दौरान हो चुकी थी।
2024 में हजारों श्रद्धालु भूखे-प्यासे, 36 घंटे तक जाम में फंसे रहे थे।
हर बार एक ही बयान आता है — “उम्मीद से ज्यादा लोग आ गए, इसलिए व्यवस्थाएं बिगड़ गईं।”
लेकिन यह सवाल कौन पूछेगा कि जब हर साल लाखों लोग पहुंचते हैं, तो आयोजनों की तैयारी पहले से क्यों नहीं होती?

आस्था बनाम अव्यवस्था
श्रद्धालु कहते हैं—“यह तो मोक्ष है, यहां मरने से पुण्य मिलेगा।”
लेकिन जब बिना व्यवस्था के आयोजित भक्ति महोत्सव, प्रशासनिक लापरवाही, और भीड़ प्रबंधन में असफलता लोगों की जान ले, तो यह सिर्फ आस्था का मामला नहीं रह जाता, यह जीवन और अधिकार का सवाल बन जाता है।
विडंबना तो तब सामने आई जब पंडित प्रदीप मिश्रा की तरफ से कोई गंभीर वक्तव्य सामने नहीं आया। उल्टा, एक वायरल वीडियो में उन्हें हंसते हुए देखा गया, जिससे श्रद्धालुओं की भावनाएं और भी आहत हुईं।
अब आगे क्या?
अब जरूरी हो गया है कि:
- आयोजन समिति पूर्वानुमान के आधार पर भीड़ नियंत्रण के पुख्ता इंतजाम करे।
- आपात स्वास्थ्य सुविधाएं, जल वितरण, छांव, वाहन पार्किंग, और प्रशासनिक नियंत्रण केंद्र बनाए जाएं।
- हर साल होने वाली मौतों को “किस्मत” कहकर नहीं छोड़ा जाए, बल्कि इसे लापरवाही से हुई दुर्घटनाएं माना जाए।
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श्रद्धा और भक्ति के आयोजनों में आस्था की डुबकी के साथ व्यवस्था का मजबूत किनारा जरूरी है। वरना हर साल ऐसे आयोजन लोगों की जान लेते रहेंगे और हम बस यही कहते रहेंगे— “मोक्ष मिल गया…”