नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सड़क हादसों में घायल लोगों के लिए कैशलेस इलाज की योजना लागू करने में हो रही देरी को लेकर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि अगर अधिकारी अदालत के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेंगे, तो उन्हें व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होना पड़ेगा।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी 2024 को मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 162 (2) के तहत केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह ‘गोल्डन आवर’ के दौरान सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस मेडिकल ट्रीटमेंट की योजना 14 मार्च तक तैयार करे। लेकिन निर्धारित समय सीमा गुजर जाने के बावजूद योजना पूरी तरह लागू नहीं की गई।
इस पर नाराजगी जताते हुए जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने 9 अप्रैल को केंद्र सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव को तलब किया। कोर्ट ने कहा, “जब तक शीर्ष अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से नहीं बुलाया जाएगा, तब तक वे कोर्ट को गंभीरता से नहीं लेते।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि यदि अगली सुनवाई तक इस मामले में ठोस प्रगति नहीं हुई, तो अवमानना का नोटिस जारी किया जाएगा। कोर्ट ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल को ‘हिट एंड रन’ मामलों में अब तक दिए गए मुआवजे के नए आंकड़े भी पेश करने के लिए कहा है।

यह मामला मूल रूप से ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एस. राजसीकरन की रिट याचिका से जुड़ा है, जिन्होंने कोयंबटूर के गंगा हॉस्पिटल में काम करते हुए कई गंभीर सड़क दुर्घटना मामलों को देखा है। उन्होंने मांग की थी कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162 (2) को पूरी तरह लागू किया जाए, ताकि दुर्घटना के पहले ‘गोल्डन आवर’ में जान बचाई जा सके।
धारा 162 (2) के तहत केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि किसी भी सड़क हादसे के पीड़ित को पहले घंटे के भीतर तत्काल और कैशलेस इलाज मिल सके, और इसके लिए एक निर्धारित फंड भी उपलब्ध कराया जाए।
गौरतलब है कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 14 मार्च 2024 को एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ‘कैशलेस इलाज योजना’ की शुरुआत की थी। इसके तहत पीड़ित को अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक की मदद देने की बात कही गई थी। बाद में 7 जनवरी 2025 को उन्होंने इसे पूरे देश में लागू करने की घोषणा की, लेकिन योजना अब तक पूरी तरह लागू नहीं हो पाई है।
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अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से रिपोर्ट पेश करने और देरी के कारण स्पष्ट करने को कहा है। इस महत्वपूर्ण याचिका पर देशभर के लाखों लोगों की नजरें टिकी हुई हैं, जिनकी जान वक्त पर इलाज न मिलने की वजह से खतरे में पड़ती है।