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चलती बस में ड्राइवर को दिल का दौरा, यात्रियों को बचाया लेकिन इलाज में देरी से गई जान

मनेंद्रगढ़– पेंड्रा से बैकुंठपुर जा रही एक प्राइवेट बस में उस वक्त अफरा-तफरी मच गई, जब चलती बस के ड्राइवर नारायण सिंह (उम्र 48) को अचानक दिल का दौरा पड़ा। लेकिन इससे पहले कि स्थिति पूरी तरह बेकाबू होती, उन्होंने बहादुरी और जिम्मेदारी का परिचय देते हुए बस को ब्रेकर पर धीरे करके रोक दिया, जिससे बस में सवार 40 से अधिक यात्रियों की जान बच गई।

बस के ब्रेकर पर आते ही सीने में उठा दर्द

यह हादसा खड़गवां थाना क्षेत्र में उस वक्त हुआ, जब बस एक स्पीड ब्रेकर पार कर रही थी। ड्राइवर नारायण सिंह ने गियर बदलते समय तेज सीने में दर्द की शिकायत की और कुछ ही पलों में उन्हें बेहोशी छाने लगी। वे किसी तरह बस को नियंत्रित करते हुए धीरे-धीरे स्टेयरिंग पर झुक गए, जिससे बस सड़क किनारे सुरक्षित रुक गई।

बस स्टाफ और यात्रियों ने तुरंत स्थिति को संभाला और उन्हें नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। लेकिन वहां न तो जरूरी चिकित्सा उपकरण मौजूद थे और न ही कार्डियक इमरजेंसी के लिए कोई विशेषज्ञ या सुविधा।

एम्बुलेंस नहीं, सिस्टम फेल

डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत रेफर करने की सिफारिश की, पर दुर्भाग्य से 108 एम्बुलेंस सेवा उपलब्ध नहीं हो सकी। बार-बार कॉल करने पर भी कोई वाहन नहीं आया। आख़िरकार 100 नंबर पर कॉल करके किसी अन्य वाहन की मदद ली गई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। खड़गवां अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने नारायण सिंह को मृत घोषित कर दिया।

स्थानीय ग्रामीणों में गुस्सा, स्वास्थ्य सेवाओं पर उठे सवाल

घटना के बाद स्थानीय ग्रामीणों और यात्रियों में भारी आक्रोश देखा गया। लोगों ने बताया कि इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं नाम मात्र की हैं। न तो स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त स्टाफ है, न डॉक्टर उपलब्ध होते हैं, और इमरजेंसी सुविधा तो सिर्फ कागजों पर ही सीमित है।

ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को पूरी तरह सुसज्जित किया जाए
  • 108 एम्बुलेंस सेवाएं हर हाल में चालू रहें
  • ग्रामीण अंचलों में इमरजेंसी चिकित्सा के लिए फिक्सड टाइम डॉक्टर तैनात किए जाएं

सरकार और प्रशासन की चुप्पी

अब तक स्वास्थ्य विभाग या जिला प्रशासन की ओर से कोई भी आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। न ही कोई जांच के आदेश दिए गए हैं। इससे लोगों में प्रशासन के प्रति नाराजगी और अविश्वास और गहरा हो गया है।

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एक सवाल जो रह गया: अगर समय पर इलाज मिलता तो क्या बच जाती जान?

नारायण सिंह जैसे ड्राइवर, जो आखिरी सांस तक दूसरों की जिंदगी को प्राथमिकता देते हैं, उनके लिए व्यवस्था ने क्या किया?
आज सवाल यह नहीं है कि दिल का दौरा पड़ा, बल्कि यह है कि समय पर एम्बुलेंस और इलाज क्यों नहीं मिला?
यह एक चेतावनी है, एक मौका है सुधार का, वरना अगली बार कोई और नारायण समय से पहले हमें अलविदा कहेगा।

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