Homeप्रदेश“चुनाव से पहले क्यों?”, बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर ECI से पूछा सवाल

“चुनाव से पहले क्यों?”, बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर ECI से पूछा सवाल

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन को लेकर चुनाव आयोग (ECI) की पहल पर अब देश की सर्वोच्च अदालत ने सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया तर्कसंगत है, लेकिन इसका समय बेहद संवेदनशील है। अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा कि आखिर इतनी अहम प्रक्रिया चुनाव के कुछ ही महीने पहले क्यों शुरू की गई? क्या यह समय चुनाव को प्रभावित करने वाला नहीं है?

दरअसल, बिहार में वोटर लिस्ट की समीक्षा और नागरिकता सत्यापन को लेकर विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि आयोग का यह कदम मनमाना और भेदभावपूर्ण है, जो लाखों मतदाताओं को उनके वोटिंग अधिकार से वंचित कर सकता है।

कोर्ट ने कहा – “तर्कसंगत है प्रक्रिया, लेकिन टाइमिंग पर सवाल उठते हैं”

सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा:

“वोटर वेरिफिकेशन एक व्यावहारिक और संवैधानिक प्रक्रिया है। लेकिन सवाल है कि आपने इसे चुनाव से ऐन पहले क्यों शुरू किया? क्या यह पहले नहीं हो सकता था?”

कोर्ट ने आशंका जताई कि इस प्रक्रिया के कारण पहले से लिस्ट में मौजूद लाखों लोग भी अगर कुछ दस्तावेज नहीं दिखा पाए, तो मतदान से वंचित हो सकते हैं।

आधार नहीं चलेगा? कोर्ट ने खड़े किए सवाल

विवाद का बड़ा मुद्दा यह है कि वोटर की नागरिकता सिद्ध करने के लिए चुनाव आयोग ने जिन 11 दस्तावेजों को मान्यता दी है, उनमें आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड शामिल नहीं हैं।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा,

“पूरा देश आधार के पीछे पागल हो रहा है, लेकिन चुनाव आयोग कहता है कि यह मान्य नहीं है। ये दोहरा रवैया क्यों?”

कोर्ट ने भी इस पर गंभीर सवाल उठाए। हालांकि, ECI के वकील ने तर्क दिया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं होता, यह UIDAI के अनुसार सिर्फ पहचान है। इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह मुद्दा गृह मंत्रालय का है, चुनाव आयोग का नहीं।

“कौन तय करेगा कौन नागरिक है?” – कपिल सिब्बल

याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल ने भी मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा,

“ECI कौन होता है यह कहने वाला कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं? इसका दायित्व राज्य का है, मतदाता का नहीं। आयोग के पास ऐसा कहने का कोई वैध आधार नहीं है।”

उन्होंने चेताया कि आयोग की प्रक्रिया 2003 के बाद मतदाता बने लोगों को हटा सकती है, भले ही उन्होंने 5 बार चुनाव में हिस्सा लिया हो।

चुनाव आयोग का पक्ष – “प्रक्रिया पूरी होने दीजिए”

ECI की तरफ से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि फिलहाल इस प्रक्रिया को रोका न जाए। उनका कहना था:

“हम यह सूची अंतिम रूप से प्रकाशित करने से पहले माननीय अदालत को दिखाएंगे। प्रक्रिया पारदर्शी है और इसमें किसी के अधिकार नहीं छीने जा रहे।”

क्या कहना है कोर्ट का?

कोर्ट ने प्रक्रिया पर रोक तो नहीं लगाई, लेकिन समय और आधार जैसे बिंदुओं पर आयोग को फिर से विचार करने की सलाह दी। अदालत ने साफ किया कि लोकतंत्र में मतदान का अधिकार सबसे बुनियादी अधिकारों में से एक है, और इससे खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।

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वोटर वेरिफिकेशन की जरूरत सभी को है, लेकिन चुनावी मौसम में इसे लागू करना सवालों के घेरे में है। साथ ही, आधार कार्ड को नकारना उस व्यवस्था को झटका दे सकता है, जो पूरे देश में डिजिटल पहचान की रीढ़ बन चुका है। अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश और चुनाव आयोग की संभावित प्रतिक्रिया पर टिकी हैं।

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