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छतरपुर में आग से लड़ने के लिए सिर्फ 17 दमकल! 3 नगरपालिकाएं, 1187 गांव, लेकिन इंतज़ाम बेहाल

छतरपुर:- भीषण गर्मी और आग की घटनाओं के बीच छतरपुर जिले की फायर ब्रिगेड व्यवस्था खुद ही संकट में है। जिले की 3 नगरपालिकाएं, 13 नगर परिषदें और 1187 गांव – इतनी बड़ी आबादी और क्षेत्रफल के लिए केवल 17 चालू दमकल वाहन उपलब्ध हैं। जबकि मानकों के अनुसार कम से कम 45 दमकल होनी चाहिए। यह आंकड़ा न सिर्फ संसाधनों की कमी दिखाता है, बल्कि जिले की अग्निसुरक्षा को लेकर प्रशासन की उदासीनता भी उजागर करता है।

हर साल जलता है जिला, फिर भी नहीं जागता सिस्टम

गर्मी के मौसम में आगजनी की घटनाएं आम हो चुकी हैं। खेतों में नरवाई जलती है, बाजारों में आग लगती है, घर जलते हैं – लेकिन स्थानीय निकाय अब भी आंख मूंदे बैठे हैं। हर साल आग से करोड़ों का नुकसान होता है, जानें खतरे में पड़ती हैं, लेकिन फायर सेफ्टी को न प्राथमिकता मिलती है, न फंड।

दमकलें खराब, स्टाफ अनुभवहीन, दूरियां जानलेवा

जिले में कुल 20 दमकलें हैं, जिनमें से तीन खराब पड़ी हैं। जो 17 चालू हैं, वे भी पुराने और सीमित क्षमता के हैं। छतरपुर शहर की आबादी डेढ़ लाख से अधिक है, लेकिन यहां केवल तीन दमकल हैं। नौगांव, खजुराहो और राजनगर जैसे बड़े क्षेत्रों में भी दो-दो दमकल हैं, जिनमें से एक-एक खराब है।

फायर ब्रिगेड चलाने वाले कर्मचारियों की भी तकनीकी ट्रेनिंग नहीं हुई है। ये लोग बिना सुरक्षा उपकरणों के काम कर रहे हैं। आग से लड़ते वक्त कोई दिशा-निर्देश या रणनीति नहीं अपनाई जाती, जो हादसों को और भयावह बना देता है।

तीन घटनाएं जो पोल खोलती हैं सिस्टम की

  1. घुवारा: नरवाई की आग बस्ती तक पहुंच गई, लेकिन दमकल दो घंटे बाद पहुंची। तब तक खेत और पेड़ राख हो चुके थे।
  2. गौरिहार: मनवारा गांव में किसान के घर में आग लगी। पास कोई दमकल नहीं थी, 35 किमी दूर से बुलाई गई। तब तक लाखों की संपत्ति जल चुकी थी।
  3. नौगांव: सड़े गांव में आग लगी, लेकिन गढ़ीमलहरा और नौगांव से दमकल आने में 20 किमी की दूरी तय करते हुए देर हो गई। सारा घरेलू सामान खाक हो गया।

नेशनल फायर नॉर्म्स के खिलाफ छतरपुर की स्थिति

नेशनल फायर एडवाइजरी कमेटी के अनुसार, हर 50 हजार की आबादी पर एक दमकल जरूरी है। छतरपुर जिले की आबादी 22 से 23 लाख के बीच है, ऐसे में 45 दमकलों की आवश्यकता है। मगर हकीकत में सिर्फ 17 चालू दमकल ही हैं, यानी जरूरत का एक तिहाई भी नहीं।

प्रशासन का बयान: जिम्मेदारी निकायों की

इस विषय में डूडा की परियोजना अधिकारी साजिदा कुरैशी का कहना है कि,

“अग्निकांड से निपटने के लिए टैंकर और अन्य संसाधन उपलब्ध हैं। फायर ब्रिगेड की खरीदी के लिए नगर निकाय स्वतंत्र हैं, वे प्रस्ताव बनाकर खुद वाहन खरीद सकते हैं।”

यह बयान साफ करता है कि जिम्मेदारी स्थानीय निकायों पर डाल दी गई है, लेकिन इन निकायों के पास न इच्छा है, न बजट, और न ही विजन।

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वरना अगली चिंगारी सिर्फ घर नहीं जलाएगी, प्रशासन की साख भी राख कर देगी।

छतरपुर की फायर ब्रिगेड व्यवस्था सिर्फ कमजोर नहीं, बल्कि पूरी तरह लचर है। हादसे घटने के बाद अफसरों की जांच और फाइलें चलती हैं, पर जमीनी हकीकत नहीं बदलती।
अब समय आ गया है कि स्थानीय निकाय और शासन मिलकर ठोस कार्य योजना बनाएं, संसाधन बढ़ाएं, कर्मियों को प्रशिक्षित करें और आग से लड़ने की तैयारी मजबूत करें।

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