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ट्रॉमा सेंटर में पदस्थ गायनेकोलॉजिस्ट और डेंटल डॉक्टर पर गंभीर आरोप, जांच के बाद भी कार्रवाई शून्य!

सिंगरौली जिले का जिला अस्पताल स्थित ट्रॉमा सेंटर इन दिनों एक बार फिर से भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के आरोपों की वजह से सुर्खियों में है। जहां एक ओर सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर मरीजों के साथ हो रही कथित धन वसूली ने पूरे चिकित्सा तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

डेंटल डॉक्टर पर लगे पैसे वसूली के गंभीर आरोप

मामला ट्रॉमा सेंटर में कार्यरत बांड पर पदस्थ डेंटल डॉक्टर रचना सिंह का है, जिन पर दो अलग-अलग मरीजों से कथित तौर पर 25 हजार और 5 हजार रुपये की वसूली करने का आरोप लगाया गया है।

आरोप है कि डॉक्टर ने सरकारी अस्पताल में उपचार के बजाय मरीजों को अपने निजी क्लीनिक बुलाकर पैसे लिए। शिकायत के अनुसार, ट्रॉमा में भर्ती दो मरीजों — रामबृज केवट और लालजीत पंडो, जो मुंह की गंभीर चोटों से पीड़ित थे — उनके परिजनों से मोटी रकम वसूली गई।

सीधे सिविल सर्जन से की गई शिकायत

यह मामला तब उजागर हुआ जब सिविल सर्जन अस्पताल भ्रमण पर थे। उसी दौरान मरीजों के परिजनों ने मौके पर ही डॉक्टर पर आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने कहा कि डॉक्टर ने इलाज के नाम पर उन्हें अपने निजी क्लीनिक पर बुलाया और वहां इलाज के लिए पैसा मांगा।

शिकायत सामने आने के बाद अस्पताल प्रशासन ने जांच बैठाई, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अब तक न तो कोई ठोस कार्रवाई हुई है और न ही डॉक्टर के खिलाफ कोई विभागीय नोटिस जारी किया गया है।

कहां है जवाबदेही?

यह सवाल अब उठ रहा है कि जब शिकायत प्रत्यक्ष रूप से सिविल सर्जन के समक्ष दर्ज की गई, और मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रारंभिक जांच भी कराई गई, तब भी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?

क्या यह चिकित्सा क्षेत्र में फैले “बिना डर के भ्रष्टाचार” की एक और बानगी है?

गायनेकोलॉजिस्ट पर भी संदेह

सूत्रों की मानें तो ट्रॉमा सेंटर में पदस्थ एक गायनेकोलॉजिस्ट पर भी ऐसे ही आर्थिक शोषण के आरोप समय-समय पर सामने आए हैं, लेकिन हर बार मामले को दबा दिया गया। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सिस्टम खुद इन आरोपों को संरक्षण दे रहा है

प्रशासनिक चुप्पी से नाराज जनता

स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर स्वास्थ्य विभाग पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि यदि ऐसे मामलों पर समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो आम जनता का सरकारी स्वास्थ्य तंत्र से विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

क्या कहता है नियम?

सरकारी अस्पताल में पदस्थ डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस की अनुमति नहीं होती। यदि कोई डॉक्टर मरीजों को निजी क्लीनिक भेजकर पैसे वसूलता है तो यह आचार संहिता का उल्लंघन और कानूनी अपराध माना जाता है।

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मामला केवल आर्थिक अनियमितता का नहीं है, यह गंभीर नैतिक और पेशेवर लापरवाही का विषय है। जब जनता जीवन और मौत की लड़ाई लड़ रही हो, तब डॉक्टरों द्वारा की गई ऐसी हरकतें केवल पेशेवर अपराध नहीं बल्कि मानवीय संवेदना की हत्या भी कही जा सकती हैं।

अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस पर क्या ठोस कदम उठाते हैं — या फिर यह मामला भी रोज़मर्रा की फाइलों में दफन होकर भुला दिया जाएगा

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