पटना। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा सियासी विवाद खड़ा हो गया है। आरजेडी नेता के एक बयान तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग को सक्रिय कर दिया है। तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि उनका नाम मतदाता सूची से गायब है और वे खुद वोटर नहीं हैं। इस दौरान उन्होंने एक EPIC नंबर (मतदाता पहचान पत्र संख्या) RAB2916120 भी सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया। अब चुनाव आयोग ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए तेजस्वी को नोटिस जारी किया है और उनसे वह वोटर आईडी कार्ड मांगा है जिसे उन्होंने प्रेस के सामने दिखाया था।
आयोग ने मांगा कार्ड, जताई फर्जीवाड़े की आशंका
चुनाव आयोग ने पत्र लिखते हुए तेजस्वी यादव से स्पष्ट किया है कि उन्होंने जो EPIC नंबर बताया था, वह आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं है। जांच में सामने आया है कि RAB2916120 नामक कोई EPIC नंबर निर्वाचन आयोग के डेटा में मौजूद नहीं है। ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर तेजस्वी यादव ने जिस पहचान पत्र को दिखाया, वह किस स्रोत से आया? क्या वह दस्तावेज फर्जी था?
आयोग ने तेजस्वी को निर्देश दिया है कि वे उस वोटर आईडी की कॉपी तत्काल सौंपें, ताकि उसकी सत्यता की जांच की जा सके। इस पूरे घटनाक्रम ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है, क्योंकि मामला सीधे एक बड़े विपक्षी नेता से जुड़ा है।
तेजस्वी का दावा और EC का खंडन
तेजस्वी यादव ने शनिवार को एसआईआर के विरोध में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि “अब देखिए! मैं खुद मतदाता के रूप में पंजीकृत नहीं हूं। इससे तो मैं चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाता हूं। शायद मुझे अब नागरिक भी नहीं माना जाएगा।”
उनके इस बयान के तुरंत बाद चुनाव आयोग ने स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया कि यह दावा तथ्यहीन और भ्रामक है। आयोग ने कहा कि तेजस्वी का नाम पटना के मतदान केंद्र संख्या 124 (बिहार इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय पुस्तकालय भवन) की मतदाता सूची में क्रम संख्या 416 पर दर्ज है और उनका वैध EPIC नंबर RAB0456228 है।
चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की प्रति भी जारी की, जिसमें तेजस्वी यादव का नाम, फोटो और अन्य विवरण स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। आयोग ने तेजस्वी के दावों को ‘निराधार’ करार देते हुए इसे मतदाताओं को भ्रमित करने वाला बताया।

क्या साजिश या चूक?
अब यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि तेजस्वी यादव द्वारा दिखाया गया EPIC नंबर जानबूझकर झूठा बताया गया या फिर किसी तकनीकी चूक का नतीजा था। लेकिन चूंकि उन्होंने प्रेस के सामने इस कार्ड को प्रस्तुत किया, और वह दस्तावेज अब तक चुनाव आयोग को सौंपा नहीं गया है, ऐसे में यह एक गंभीर विषय बन गया है।
अगर जांच में यह साबित होता है कि तेजस्वी यादव ने फर्जी या मनगढ़ंत दस्तावेज का प्रयोग किया है, तो उन पर कानूनी कार्रवाई की संभावना भी बन सकती है। भारतीय दंड संहिता और चुनाव नियमों के तहत फर्जी दस्तावेज दिखाना एक दंडनीय अपराध है।
राजनीतिक असर
इस घटनाक्रम ने बिहार की सियासत को गरमा दिया है। जहां एक ओर विपक्षी खेमे में बेचैनी है, वहीं सत्तारूढ़ दलों को तेजस्वी यादव को घेरने का नया मुद्दा मिल गया है। भाजपा नेताओं ने इस बयान को लेकर तेजस्वी पर निशाना साधते हुए पूछा है कि जब खुद उनके दस्तावेज ही संदिग्ध हैं, तो वे किस नैतिक आधार पर प्रशासन और चुनाव व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं?
तेजस्वी समर्थक जहां इसे “राजनीतिक दबाव की साजिश” बता रहे हैं, वहीं आलोचक कह रहे हैं कि यह गैरजिम्मेदाराना व्यवहार है जो नेता स्तर पर नहीं किया जाना चाहिए था।
आगे क्या?
चुनाव आयोग ने तेजस्वी यादव से जवाब और कार्ड की मूल प्रति मांगी है। यदि वे आयोग को संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाते, तो मामला जांच एजेंसियों को सौंपा जा सकता है। इसके अलावा यह भी संभव है कि यदि फर्जी दस्तावेज की पुष्टि होती है, तो उनके चुनाव लड़ने पर रोक या अन्य कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।
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बिहार विधानसभा चुनाव की हलचल के बीच तेजस्वी यादव का यह वोटर आईडी विवाद राजनीतिक और कानूनी दोनों ही मोर्चों पर बड़ा मुद्दा बन गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि तेजस्वी आयोग को क्या जवाब देते हैं और क्या वह कथित कार्ड सौंपते हैं या नहीं। लेकिन इतना तो तय है कि इस मामले ने एक बार फिर यह साबित किया है कि चुनाव के दौरान हर बयान और दस्तावेज की गंभीरता कितनी अहम होती है।