दमोह। मध्य प्रदेश में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के सरकारी दावों को दमोह जिले की यह शर्मनाक घटना चुनौती देती है। जिले के हटा सिविल अस्पताल में एक गर्भवती महिला को रात के समय न तो बेड मिला, न डॉक्टर, और न ही किसी प्रकार की चिकित्सकीय सहायता। महिला ने अस्पताल की गैलरी के फर्श पर ही बच्चे को जन्म दिया।
यह घटना न सिर्फ सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करती है, बल्कि इसने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि आखिर “जननी सुरक्षा योजना” जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं जमीनी स्तर पर कितनी प्रभावी हैं?
क्या है पूरा मामला?
यह दर्दनाक घटना हटा विकासखंड के अंतर्गत आने वाले हिनपटी गांव की महिला भारती बाई के साथ हुई। गर्भवती भारती को जब देर रात प्रसव पीड़ा शुरू हुई, तो उनके पति मनीष अठ्या उन्हें लेकर हटा सिविल अस्पताल पहुंचे। उम्मीद थी कि आपात स्थिति में चिकित्सकीय मदद तत्काल मिलेगी, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा।
अस्पताल का नया लेबर रूम ताले में बंद था और किसी स्टाफ ने दरवाजा नहीं खोला। मनीष ने कई बार आवाज लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अंततः भारती को लेकर वे पुरानी बिल्डिंग की ओर दौड़े, लेकिन पीड़ा अधिक बढ़ने पर महिला वहीं अस्पताल की गैलरी में बैठ गई।
फर्श बना प्रसव कक्ष, इंसानियत बनी सहारा
जब कोई डॉक्टर या नर्स नहीं आया, तो अस्पताल में मौजूद अन्य मरीजों की महिला परिजनों ने फर्श पर घेरा बनाकर प्रसव कराया। मानवता की मिसाल पेश करते हुए इन महिलाओं ने अपने स्तर पर भारती की मदद की और सुरक्षित प्रसव करवाया। न कोई चिकित्सकीय उपकरण था, न सेनेटाइज़ेशन।

पति का बयान
पीड़िता के पति मनीष अठ्या ने कहा:
“मैं बार-बार स्टाफ को बुलाता रहा, लेकिन कोई नहीं आया। डॉक्टर अपने कमरे से बाहर तक नहीं निकले। मेरी पत्नी ने फर्श पर ही बच्चे को जन्म दिया।”
डॉक्टर कमरे में ही रहे बंद
स्थानीय लोगों के अनुसार, ड्यूटी पर तैनात डॉ. विदेश शर्मा अस्पताल परिसर में मौजूद थे, लेकिन उन्होंने बाहर निकलकर मरीज को देखने की जरूरत नहीं समझी। जब तक नर्सिंग स्टाफ आया, बच्चा जन्म ले चुका था। इसके बाद महिला और नवजात को वार्ड में शिफ्ट कर इलाज शुरू किया गया। दोनों की हालत अब स्थिर बताई जा रही है, लेकिन संक्रमण का खतरा बना हुआ है।
बड़े सवाल जो जवाब मांगते हैं
- प्रसव पीड़िता को अस्पताल में बेड क्यों नहीं मिला?
- लेबर रूम में ताला क्यों लगा था, और जिम्मेदार कौन है?
- अगर ड्यूटी पर डॉक्टर थे, तो उन्होंने आपात स्थिति में हस्तक्षेप क्यों नहीं किया?
- यदि इस घटना में महिला या नवजात को कोई नुकसान होता, तो उसकी जवाबदेही किसकी होती?
स्वास्थ्य तंत्र पर गहरा प्रश्नचिन्ह
यह घटना दर्शाती है कि जिले के सरकारी अस्पतालों में “आपातकालीन सेवाएं” केवल कागजों तक सीमित हैं। न तो पर्याप्त स्टाफ है, न जवाबदेही तय है। जब एक प्रसव पीड़िता को अस्पताल पहुंचने के बाद भी इतनी उपेक्षा और अपमान का सामना करना पड़े, तो ये केवल प्रशासनिक असफलता नहीं, बल्कि सामाजिक नैतिकता की गिरावट भी है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया?
घटना सामने आने के बाद जिला स्वास्थ्य विभाग ने जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है। यह देखना बाकी है कि क्या दोषी डॉक्टर और स्टाफ पर कोई सख्त कदम उठाया जाएगा या यह मामला भी अन्य लापरवाही मामलों की तरह दबा दिया जाएगा।
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क्या यही है जननी सुरक्षा योजना का ज़मीन पर सच? क्या गरीब ग्रामीण महिलाओं के लिए अस्पताल सिर्फ भवन रह गए हैं? इस घटना ने पूरे प्रदेश को सोचने पर मजबूर कर दिया है