मध्य प्रदेश के दमोह जिले में मेडिकल सिस्टम की एक चौंकाने वाली लापरवाही सामने आई है, जहां एक फर्जी डॉक्टर ने खुद को कार्डियोलॉजिस्ट बताकर दर्जनों मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ किया और सात लोगों की जान ले ली। मानवाधिकार आयोग और जबलपुर मेडिकल कॉलेज की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस तथाकथित डॉक्टर, नरेंद्र यादव को तो एंजियोग्राफी जैसी बुनियादी प्रक्रिया तक ठीक से नहीं आती। उसने नागपुर से फर्जी डिग्रियों का जुगाड़ किया और खुद को “डॉ. जॉन एनकेम” बताकर पहचान तक बदल डाली।
इस मामले में सिर्फ नरेंद्र ही नहीं, बल्कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी बराबर के दोषी नजर आ रहे हैं। नरेंद्र ने न सिर्फ एक फर्जी एमबीबीएस, दो एमडी, और एक कार्डियोलॉजी की डिग्री हासिल की, बल्कि अपने आधार कार्ड में नाम बदलकर लंदन के एक नामी डॉक्टर का नाम दर्ज करवा लिया। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि दमोह के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. मुकेश जैन को इसकी जानकारी पहले से थी, बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं हुई।
मरीजों की मौत के बाद जागा प्रशासन
मामला तब गंभीर हुआ जब मिशन अस्पताल में नरेंद्र द्वारा किए गए इलाज के बाद 7 मरीजों की मौत हो गई। इसके बाद कुछ परिजनों ने शिकायतें करना शुरू किया, जो आखिरकार कलेक्टर सुधीर कोचर तक पहुंचीं। कलेक्टर ने सीएमएचओ को जांच सौंपी और 7 मार्च को डॉ. मुकेश जैन ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें नरेंद्र की डिग्रियों और पहचान को फर्जी बताया गया।

लेकिन यहां भी लापरवाही जारी रही — अस्पताल की जिस कैथलैब में ये फर्जी सर्जरी की गई, उसका रजिस्ट्रेशन जबलपुर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अखिलेश दुबे के नाम पर था। नियमानुसार, जब कैथलैब किसी और के नाम पर रजिस्टर्ड हो और वहां कोई अयोग्य व्यक्ति सर्जरी कर रहा हो, तो तुरंत उसे सील किया जाना चाहिए था। लेकिन सीएमएचओ ने न तो लैब को सील किया और न ही डॉ. दुबे को कोई नोटिस दिया।
फाइल दबाई गई, रिपोर्ट आई पर एक्शन नहीं
7 मार्च को रिपोर्ट आने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। फर्जी डॉक्टर द्वारा 8 मरीजों की हार्ट सर्जरी की गई, जिनमें से 7 की जान चली गई। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत या लापरवाही की वजह से यह मौतों का सिलसिला रुक नहीं पाया।
मानवाधिकार आयोग की टीम ने मौके पर पहुंचकर विस्तृत जांच की है। आयोग का कहना है कि रिपोर्ट तैयार की जा रही है और उसके बाद ही दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
जब कलेक्टर सुधीर कोचर से सवाल पूछा गया कि 7 मार्च को रिपोर्ट मिलने के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं हुई, तो उन्होंने कहा,
“मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट आने तक मैं कुछ नहीं कह सकता।”
CMHO से जब पूछा गया कि उन्होंने कैथलैब सील क्यों नहीं की और फर्जी डॉक्टर के खिलाफ सख्त कदम क्यों नहीं उठाए, तो उन्होंने भी रिपोर्ट की प्रतीक्षा का हवाला दिया।
यह भी पढ़ें:- ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ विवाद: अपूर्वा मुखीजा को रेप और मर्डर की धमकियां, सोशल मीडिया पर बढ़ती नफरत
इस पूरे प्रकरण ने न सिर्फ प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे एक फर्जी डॉक्टर खुलेआम ऑपरेशन करता रहा और सरकारी सिस्टम आंखें मूंदे बैठा रहा। अब देखने वाली बात यह है कि क्या मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट आने के बाद कोई ठोस कार्रवाई होती है या यह मामला भी बाकी अनगिनत फाइलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।