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नई शिक्षा नीति के तहत आरएसएस विचारकों की किताबें कॉलेजों में पढ़ाई जाएंगी, मध्यप्रदेश सरकार का बड़ा फैसला

 

 भोपाल: नई शिक्षा नीति के तहत भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। राज्य सरकार ने प्रदेश के सरकारी और निजी कॉलेजों में पढ़ाई के लिए 88 किताबों की सूची जारी की है, जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के लेखक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के विचारक हैं। इस आदेश के तहत भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ स्थापित करने के निर्देश भी दिए गए हैं, जिसमें इस साहित्य की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।

उच्च शिक्षा विभाग के निर्देश

उच्च शिक्षा विभाग ने सभी कॉलेजों को जनभागीदारी समिति की निधि से इन पुस्तकों की खरीदारी के निर्देश दिए हैं। यह पहल इसी सत्र से लागू होगी। सूची में शामिल पुस्तकों में चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व विकास, स्वामी विवेकानंद की शिक्षा, वैदिक गणित, भारतीय न्याय व्यवस्था, और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे विषयों पर केंद्रित पुस्तकें हैं। प्रमुख लेखकों में संघ विचारक डॉ. अतुल कोठारी, दीनानाथ बत्रा, देवेंद्र राव देशमुख, सुरेश सोनी, और डॉ. सतीशचंद्र मित्तल शामिल हैं।

पुस्तकों की सूची

  • दीनानाथ बत्रा: 14 किताबें
  • डॉ. अतुल कोठारी: 10 किताबें
  • स्वामी विवेकानंद: 4 किताबें
  • सुरेश सोनी: 3 किताबें
  • डॉ. कैलाश विश्वकर्मा: 3 किताबें
  • देवेंद्र राव देशमुख: 3 किताबें
  • एनके जैन: 2 किताबें
  • प्राणनाथ पंकज: 2 किताबें
  • राकेश भाटिया: 2 किताबें

राजनीतिक प्रतिक्रिया

मध्य प्रदेश सरकार की इस पहल पर राजनीति भी गरमा गई है। कांग्रेस ने इस कदम पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिन पुस्तकों के लेखक हैं, उनका शिक्षा जगत से कोई ठोस संबंध नहीं है और ये किताबें एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिखी गई हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि उनकी सरकार बनने पर इस आदेश को रद्द किया जाएगा।

भाजपा ने कांग्रेस के विरोध पर पलटवार किया है। भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल ने कहा कि भारत केंद्रित शिक्षा व्यवस्था से आपत्ति क्यों है? यदि कोई विषय आपत्तिजनक और गैर-संविधानिक नहीं है, तो इस पर आपत्ति क्यों जताई जा रही है?

नई शिक्षा नीति के तहत भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने का प्रयास स्वागत योग्य है, जो भारतीय सांस्कृतिक धरोहर और ज्ञान को संरक्षित और प्रसारित करने में मददगार हो सकता है। हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि इस तरह की नीतियां सभी विचारधाराओं को सम्मान दें और शिक्षा के क्षेत्र में संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखें। किताबों की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और विविधता का ध्यान रखना आवश्यक है ताकि शिक्षा प्रणाली में समन्वय और व्यापकता बनी रहे।

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