सीधी जिले के शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज परिसर में आज एक प्रेरणादायक पहल के तहत “एक पेड़ राष्ट्र के नाम” अभियान के अंतर्गत वृक्षारोपण किया गया। यह कार्यक्रम केवल पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें राष्ट्रभक्ति, सामाजिक चेतना और युवाओं की जिम्मेदारी जैसे व्यापक सरोकारों को भी गहराई से जोड़ा गया।
इस आयोजन की विशेष बात यह रही कि इसमें जिले के युवाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। खास तौर पर कॉलेज से जुड़े छात्रनेता शिवांशु द्विवेदी ने इस कार्यक्रम को नई ऊर्जा और सोच प्रदान की। कॉलेज में लंबे समय से सक्रिय रहे शिवांशु न केवल विद्यार्थियों के हितों की आवाज़ बनकर सामने आए हैं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय विषयों को लेकर भी लगातार सक्रिय रहते हैं।
उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “पेड़ लगाना सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य देने का संकल्प है। जब हम इसे राष्ट्र के नाम समर्पित करते हैं, तो यह केवल हरियाली नहीं, बल्कि हमारे भीतर जाग्रत देशभक्ति की अभिव्यक्ति बन जाती है।”


कार्यक्रम में कॉलेज के प्राचार्य श्री मनोरथ अग्निहोत्री, मजदूर संघ के जिला उपाध्यक्ष श्री विकास नारायण तिवारी, शिक्षकगण श्री आशुतोष पांडेय और अनेक छात्र-छात्राएं भी शामिल हुए। सभी ने मिलकर पौधारोपण किया और हर पौधे के संरक्षण की जिम्मेदारी भी व्यक्तिगत रूप से ली।
प्राचार्य श्री अग्निहोत्री ने कहा कि “ऐसी पहलें जब छात्र नेतृत्व के ज़रिए होती हैं, तो वे केवल एक दिन का आयोजन नहीं रहतीं, बल्कि यह विचार बनकर आगे बढ़ती हैं।” उन्होंने छात्रनेता शिवांशु द्विवेदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे युवाओं की सक्रिय भागीदारी समाज के लिए उम्मीद की किरण है।
पौधारोपण के दौरान विशेष रूप से यह प्रयास किया गया कि हर पौधे के साथ एक संदेश पट्टिका लगाई जाए, जिसमें लिखा था — “यह पेड़ राष्ट्र के नाम है”। यह दृश्य उपस्थित सभी लोगों को भावनात्मक रूप से छू गया।
छात्रों ने यह संकल्प भी लिया कि वे न केवल कॉलेज परिसर में, बल्कि अपने-अपने घरों व मोहल्लों में भी इस तरह के वृक्षारोपण अभियान को आगे बढ़ाएंगे।
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कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ, और वातावरण में देशप्रेम तथा हरियाली के प्रति संकल्प की एक नई ऊर्जा दिखाई दी।
यह आयोजन इस बात का प्रतीक बन गया कि जब युवा सोच, सामाजिक भावना और जिम्मेदारी का संगम होता है, तो बदलाव सिर्फ शब्दों में नहीं, ज़मीन पर भी दिखाई देता है।