रीवा (मध्य प्रदेश) – सामाजिक सुधारकों ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित फिल्म ‘फुले’ अब विवादों के घेरे में आ चुकी है। निर्देशक अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित इस फिल्म में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा मुख्य भूमिकाओं में नजर आएंगे। हालांकि, सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म पर रोक लगाए जाने के बाद अनुराग कश्यप के एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है।
ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी
फिल्म पर रोक लगने के बाद अनुराग कश्यप द्वारा ब्राह्मण समुदाय को लेकर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी, जिस पर समाज की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। हालांकि निर्देशक ने बाद में सार्वजनिक रूप से माफी मांगी, लेकिन अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज उनके बयान से संतुष्ट नहीं है और विरोध लगातार तेज होता जा रहा है।
शनिवार को भोपाल में समाज द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसके बाद अब रविवार को रीवा में भी प्रदर्शन की योजना बनाई गई है। अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के प्रदेश अध्यक्ष पुष्पेंद्र मिश्रा ने बताया कि यह विरोध सिर्फ रीवा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसे पूरे प्रदेश में फैलाया जाएगा।

अनोखा विरोध प्रदर्शन
समाज ने विरोध के एक अनोखे तरीके को अपनाया है। पुष्पेंद्र मिश्रा ने जानकारी दी कि रीवा के सार्वजनिक शौचालयों पर अनुराग कश्यप की तस्वीरें लगाई जाएंगी। इस अभियान की शुरुआत भोपाल में शनिवार को ही कर दी गई थी। समाज का कहना है कि यह प्रतीकात्मक विरोध है, जिससे उनके असंतोष को रेखांकित किया जा सके।
फिल्म की रिलीज़ पर असमंजस
फिल्म ‘फुले’ की रिलीज़ को लेकर अब असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कुछ वर्ग इसे सामाजिक बदलाव और प्रेरणा की कहानी मानते हैं, जबकि कुछ समुदायों को इसमें अपमानजनक या पक्षपातपूर्ण प्रस्तुति नजर आ रही है। सेंसर बोर्ड द्वारा रोक लगाए जाने के बाद फिल्म की रिलीज़ को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
आलोचना और समर्थन दोनों का सामना
फिल्म को लेकर समाज में दो ध्रुवीय मत बन चुके हैं। एक ओर यह फिल्म सामाजिक सुधारकों के योगदान को सामने लाने का दावा करती है, तो दूसरी ओर आलोचकों का कहना है कि इसमें एक खास विचारधारा को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है, जो सामाजिक सद्भाव को प्रभावित कर सकती है।
अब देखना यह होगा कि सेंसर बोर्ड फिल्म को किन शर्तों पर अनुमति देता है और अनुराग कश्यप आगे क्या रुख अपनाते हैं। फिलहाल विरोध प्रदर्शन और सामाजिक प्रतिक्रिया के चलते फिल्म पर अनिश्चितता का साया मंडरा रहा है।
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‘फुले’ जैसी फिल्में जहां सामाजिक इतिहास पर रोशनी डालने की कोशिश करती हैं, वहीं इनसे जुड़ा विवाद बताता है कि ऐसे विषयों पर संवेदनशीलता और संतुलन बनाए रखना जरूरी है। अब फिल्म की रिलीज़ और उस पर जनता की प्रतिक्रिया पर सबकी निगाहें टिकी हैं।