मध्य प्रदेश की राजनीति में हाल ही में विवादास्पद बयानों की झड़ी के बाद भाजपा ने अपने नेताओं की “बोलने की आदत” पर लगाम कसने का बड़ा फैसला लिया है। अब पार्टी मंत्रियों, विधायकों और शीर्ष पदों पर बैठे नेताओं के लिए विशेष “स्पीकिंग क्लास” शुरू करने जा रही है, जिसमें उन्हें यह सिखाया जाएगा कि कब, कहां, कितना और क्या बोलना है।
यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब राज्य सरकार में जनजातीय कार्य मंत्री कुंवर विजय शाह द्वारा “ऑपरेशन सिंदूर” की आइकॉन कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए विवादित बयान ने पार्टी को असहज कर दिया था। उन्होंने उन्हें आतंकवादियों की बहन बताया था, जो न सिर्फ असत्य था बल्कि सेना के मान-सम्मान के खिलाफ भी माना गया। इसके बाद डिप्टी सीएम और भाजपा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते के भी विवादास्पद बयानों ने आग में घी डालने का काम किया।
जून से शुरू होगी स्पीकिंग क्लास
पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा यह “स्पीकिंग कोर्स” जून महीने से शुरू करने जा रही है। इस कोर्स का उद्देश्य है कि पार्टी के नेता मंच पर और मीडिया के सामने बयान देते समय संयम और मर्यादा बरतें। इसके लिए बाकायदा एक प्रशिक्षण केंद्र तैयार किया गया है, जहां राष्ट्रीय प्रवक्ता, मीडिया विशेषज्ञ और पार्टी के अनुभवी नेता उन्हें इस बात की ट्रेनिंग देंगे कि कैसे तथ्यों के साथ, संयमित और सकारात्मक बयान दिए जाएं।

भाजपा की यह कोशिश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रशिक्षण वर्गों की तरह होगी, जहां स्वयंसेवकों को सार्वजनिक जीवन में मर्यादा, भाषा और व्यवहार का पाठ पढ़ाया जाता है। इसी तरह, अब भाजपा अपने बड़बोले नेताओं को शब्दों का वजन समझाने के लिए “क्लास” लगाएगी।
क्या होगी ट्रेनिंग में खास बात
- विषय वस्तु की समझ: नेताओं को यह बताया जाएगा कि किसी मुद्दे पर बोलते समय विषय की पूरी जानकारी होनी चाहिए, आधी-अधूरी जानकारी से बचना चाहिए।
- संवेदनशील मुद्दों पर सावधानी: धर्म, सेना, जाति और महिला से जुड़े विषयों पर बेहद सावधानी से बोलने की सीख दी जाएगी।
- मीडिया हैंडलिंग: प्रेस वार्ता और टीवी डिबेट्स में कैसे पेश आना है, क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है – इसका भी गहन प्रशिक्षण मिलेगा।
- आक्रामकता vs. मर्यादा: विपक्ष पर प्रहार करते समय मर्यादा बनाए रखने की तकनीक बताई जाएगी।
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भाजपा के इस फैसले का स्वागत भी हो रहा है और इसे पार्टी की आत्मचिंतन की प्रक्रिया का हिस्सा माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब सत्ता में रहने वाले नेता गैर-जिम्मेदाराना बयान देते हैं तो उसका असर न केवल सरकार पर बल्कि समाज की समरसता पर भी पड़ता है। ऐसे में यह प्रयास पार्टी की छवि को सुधारने और अनुशासन को बनाए रखने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।