भोपाल।
मध्यप्रदेश सरकार के एक फैसले ने बेरोजगारी को सरकारी रिकॉर्ड से ही मिटा दिया है। अब सरकारी दस्तावेजों में ‘बेरोजगार’ शब्द की जगह ‘आकांक्षी युवा’ दर्ज किया जा रहा है। इससे राज्य में बेरोजगारी की वास्तविक स्थिति को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कौशल विकास मंत्री गौतम टेटवाल ने हाल ही में समाप्त हुए विधानसभा बजट सत्र में जानकारी दी कि रोजगार पोर्टल पर अब बेरोजगारों की संख्या दर्ज नहीं होती, बल्कि आकांक्षी युवाओं की संख्या दर्ज की जाती है।
29 लाख से ज्यादा बेरोजगार हुए ‘आकांक्षी युवा’
राज्य में बेरोजगारों की संख्या 29 लाख से ज्यादा हो गई है। पिछले साल जुलाई में यह आंकड़ा 25 लाख था, जो दिसंबर में बढ़कर 26 लाख हुआ और अब 29 लाख से अधिक हो गया है। सरकार के इस कदम से युवाओं को राहत नहीं मिली, बल्कि नाम बदलने की नीति पर सवाल उठने लगे हैं।

आकांक्षी युवा श्रेणी में कौन?
सरकार के अनुसार, रोजगार पोर्टल में उन युवाओं के नाम भी शामिल हैं, जो किसी नौकरी में हैं, लेकिन बेहतर अवसर की तलाश में हैं। ऐसे युवाओं को भी ‘आकांक्षी’ श्रेणी में रखा गया है। मंत्री गौतम टेटवाल ने कहा कि यदि कोई युवा जॉब में है और फिर भी बेहतर अवसर की उम्मीद रखता है, तो उसे भी आकांक्षी कहा जाएगा।
रोजगार मेलों पर करोड़ों खर्च, लेकिन जॉइनिंग का डेटा नहीं
राज्य में कितने लोगों को रोजगार मिला, इसका कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है। हालांकि, सरकार के पास रोजगार मेलों पर हुए खर्च का डेटा जरूर है। बीते चार सालों में कुल 2709 रोजगार मेले आयोजित किए गए, जिन पर 465.84 लाख रुपए खर्च हुए। इन मेलों में युवाओं को ऑफर लेटर दिए गए, लेकिन सरकार के पास इस बात की जानकारी नहीं है कि कितने युवाओं ने वास्तव में जॉइनिंग की।
पिछले वर्ष सरकार ने युवाओं से वादा किया था कि एक साल में एक लाख सरकारी पदों पर भर्ती होगी। हालांकि, यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। अब सरकार ने अगले पांच वर्षों में ढाई लाख नौकरियां देने का वादा किया है।
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युवाओं को उम्मीद है कि सरकारी विभागों में रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया तेज होगी और उन्हें सरकारी नौकरी का अवसर मिलेगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल नाम बदलने से बेरोजगारी का समाधान हो जाएगा या फिर युवाओं को वास्तविक रोजगार मिलेगा?