महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) देश की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना मानी जाती है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में हर परिवार को साल में कम से कम 100 दिनों का काम मुहैया कराना है। लेकिन एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, योजना का दायरा बढ़ने के बावजूद वास्तविक लाभ घटा है।
LibTech India द्वारा जारी की गई एक स्टडी के अनुसार, मनरेगा के तहत रजिस्टर्ड परिवारों की संख्या 8.6% बढ़ी है, जबकि लोगों को मिलने वाले काम के दिनों में 7.1% की गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की अनिश्चितता और सरकारी स्तर पर बजटीय कमी को उजागर करती है।
काम की मांग बढ़ी, आपूर्ति घटी
रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में मनरेगा में रजिस्टर्ड परिवारों की संख्या 13.80 करोड़ थी, जो 2024-25 में बढ़कर 14.98 करोड़ हो गई। हालांकि, इस दौरान प्रति परिवार मिलने वाले औसत काम के दिन (व्यक्ति दिवस) 52.42 से घटकर 50.18 हो गए। यह 4.3% की गिरावट है।
रिपोर्ट का यह भी कहना है कि योजना के तहत 100 दिनों का काम सिर्फ 7% परिवारों को ही मिल पाया। इससे यह स्पष्ट होता है कि योजना की गारंटी वास्तविकता से कोसों दूर है।
राज्यों के बीच असमानता
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि काम के दिनों के वितरण में राज्यों के बीच भारी असंतुलन है।
- ओडिशा में काम के दिनों में 34.8% की गिरावट आई।
- तमिलनाडु में 25.1% और
- राजस्थान में 15.9% की कमी दर्ज की गई।

इसके विपरीत, कुछ राज्यों में स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रही:
- महाराष्ट्र में काम के दिन 39.7% बढ़े,
- हिमाचल प्रदेश में 14.8% और
- बिहार में 13.3% की वृद्धि हुई।
बजट कटौती बनी सबसे बड़ी बाधा
LibTech India की रिपोर्ट में बताया गया कि काम के दिनों में गिरावट का सबसे बड़ा कारण बजट में कटौती और वेतन भुगतान में देरी है। इस समस्या को संसद की ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने भी चिन्हित किया है।
पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (PAEG) ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 2.64 लाख करोड़ रुपये के बजट की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने केवल 86,000 करोड़ रुपये मंजूर किए। यही नहीं, वित्त वर्ष 2024-25 में भी इस बजट में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की गई।
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LibTech India की यह रिपोर्ट यह दर्शाती है कि मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना केवल रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों से नहीं, बल्कि वास्तविक रोजगार और वेतन भुगतान की दक्षता से प्रभावी बनती है। अगर बजट, प्रबंधन और पारदर्शिता की समस्याओं को शीघ्र दूर नहीं किया गया तो योजना का उद्देश्य केवल कागजों तक ही सीमित रह जाएगा।