बोधगया। बिहार के बोधगया में स्थित विश्वप्रसिद्ध महाबोधि वृक्ष से तरल पदार्थ निकलने की खबर ने श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के बीच चिंता की लहर दौड़ा दी थी। लेकिन राहत की बात यह है कि वैज्ञानिकों की जांच में यह वृक्ष पूरी तरह से स्वस्थ पाया गया है।
महाबोधि वृक्ष वही ऐतिहासिक और पवित्र पीपल का वंशज है, जिसके नीचे 528 ईसा पूर्व शाक्यवंश के राजकुमार सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वे गौतम बुद्ध बने। बौद्ध धर्म में इस वृक्ष का अत्यंत धार्मिक महत्व है, और यही कारण है कि इसकी सुरक्षा और देखरेख में विशेष सावधानी बरती जाती है। साल में चार बार इसकी वैज्ञानिक जांच की जाती है।
हाल ही में रूटीन जांच के दौरान जब वृक्ष के तने से तरल पदार्थ का रिसाव देखा गया, तो वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) देहरादून से विशेषज्ञों की टीम को बुलाया गया। डॉ. संतन भरथ्वाल और डॉ. शैलेश पांडे की अगुआई में इस टीम ने वृक्ष की गहन जांच की।
जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि वृक्ष से तरल पदार्थ निकल रहा है, लेकिन यह कोई असामान्य या चिंताजनक बात नहीं है। डॉ. शैलेश पांडे ने बताया, “प्राचीन और विशाल वृक्षों में इस तरह का रिसाव सामान्य जैविक प्रक्रिया का हिस्सा होता है। वृक्ष पूरी तरह से स्वस्थ है, उसकी पत्तियां हरी और संक्रमणमुक्त हैं।”


इस जांच में बौद्ध भिक्षु डॉ. मनोज, डॉ. महाश्वेता महारथी, डॉ. अरविंद सिंह और किरण लामा की उपस्थिति में यह पुष्टि की गई कि बोधिवृक्ष की संपूर्ण स्थिति संतोषजनक है। सावधानी के तौर पर वृक्ष पर हल्का उपचार किया गया है, लेकिन किसी भी प्रकार के रोग या खतरे के संकेत नहीं मिले।
महाबोधि वृक्ष को लेकर बौद्ध अनुयायियों और पर्यटकों में गहरी श्रद्धा है। यह वृक्ष सिर्फ एक प्राकृतिक धरोहर नहीं, बल्कि बौद्ध संस्कृति और दर्शन की जीवंत प्रतीक है। ऐतिहासिक दृष्टि से, जब मूल वृक्ष पर हमला हुआ था, तब श्रीलंका से लाई गई उसकी शाखा को यहां फिर से स्थापित किया गया था। आज का वृक्ष उसी शाखा का वंशज है।
इस वृक्ष की देखरेख के लिए विशेष सुरक्षा उपाय किए गए हैं, जैसे कि लोहे के स्तंभों से सहारा देना, तूफानों से सुरक्षा के उपाय, और नियमित वैज्ञानिक परीक्षण।
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महाबोधि वृक्ष से जुड़ी यह घटना यह दर्शाती है कि विज्ञान और आस्था साथ चल सकते हैं, जब श्रद्धा के साथ संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का परिचय दिया जाए।