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रीवा के खजुहा कला में सरकारी भवनों पर अवैध कब्जा, प्रशासनिक लापरवाही उजागर

रीवा (मध्यप्रदेश)
रीवा जिले की गुढ़ तहसील अंतर्गत खजुहा कला गांव में सरकारी भवनों पर हो रहे अवैध कब्जों ने प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलकर रख दी है। ग्राम पंचायत के वार्ड क्रमांक 20 में ग्रामीणों की सुविधा के लिए बने कृषक सेवा सहकारी समिति भवन, बहुउद्देश्यीय सामुदायिक भवन और आरोग्य केंद्र जैसे महत्वपूर्ण परिसरों पर अब दबंगों और व्यापारियों का कब्जा हो चुका है।

जहां एक ओर शासन ग्रामीण विकास को लेकर करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी स्तर पर सरकारी संसाधनों का निजी स्वार्थों के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है।

सरकारी भवनों में भूसा, लकड़ी और व्यापार

स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार, आरोग्य केंद्र का भवन अब मरीजों की सेवा के बजाय भूसे के भंडारण केंद्र में बदल गया है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव के कुछ दबंगों ने इस भवन में भूसा भर दिया है और उस पर निजी ताले भी जड़ दिए हैं। इससे न केवल सरकारी संपत्ति का अपमान हो रहा है, बल्कि ग्रामीणों को आवश्यक चिकित्सा सेवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं।

इसी तरह, कृषक सेवा सहकारी समिति भवन का उपयोग गोबर के उपलों और लकड़ियों के ढेर के लिए किया जा रहा है। भवन की दीवारें और परिसर पूरी तरह गंदगी से पट चुके हैं। भवन का वास्तविक उद्देश्य, यानी किसानों की सेवा, अब केवल कागजों में ही शेष रह गया है।

सामुदायिक भवन बना व्यापारी का गोदाम

खजुहा कला गांव के सामुदायिक बहुउद्देश्यीय भवन की स्थिति सबसे गंभीर है। एक स्थानीय व्यापारी ने इस सरकारी भवन को पूरी तरह गोदाम में बदल डाला है। यहां अनाज की बोरियां भरी पड़ी हैं और पूरे परिसर को व्यावसायिक केंद्र बना दिया गया है।

ग्रामीणों का कहना है कि यह भवन बच्चों के खेलने और सामाजिक आयोजनों के लिए बनाया गया था, लेकिन अब जब भी बच्चे खेलने आते हैं तो व्यापारी उन्हें डांटकर भगा देता है। इससे बच्चों में डर का माहौल बन गया है और ग्रामीणों में भी गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

प्रशासनिक उदासीनता बनी सबसे बड़ी बाधा

यह कोई पहली घटना नहीं है जब रीवा जिले में इस तरह से सरकारी भवनों पर कब्जे की खबरें आई हों। इससे पहले भी कई सरकारी परिसरों में भूसा, प्याज और लकड़ी जमा किए जाने की खबरें आई थीं, लेकिन प्रशासन हर बार आंखें मूंद लेता है

ग्रामीणों ने इस मुद्दे को लेकर ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिव को भी कई बार अवगत कराया है, लेकिन न तो कोई जांच हुई और न ही अवैध कब्जाधारियों पर कार्रवाई की गई। इससे प्रशासन की निष्क्रियता और उदासीन रवैया साफ नजर आता है।

शासन की योजनाओं का हो रहा मज़ाक

इन सरकारी भवनों के निर्माण में शासन द्वारा लाखों रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन उनका वास्तविक उपयोग न होकर निजी स्वार्थों के लिए किया जाना ग्रामीण विकास के प्रयासों पर सीधा तमाचा है।

विकास योजनाएं जब केवल कागजों और शिलान्यास तक सीमित रह जाएं और धरातल पर दबंगों का कब्जा हो, तो यह सीधे तौर पर शासन की नाकामी और जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही को दर्शाता है।

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गांव के लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द इन अवैध कब्जों को हटाया जाए और सरकारी भवनों को उनके निर्धारित उद्देश्य के लिए उपयोग में लाया जाए। साथ ही उन्होंने मांग की है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक संपत्ति को निजी उपयोग में लेने की हिम्मत न कर सके।

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