रीवा, मध्य प्रदेश। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के निर्वाचन क्षेत्र रीवा स्थित संजय गांधी अस्पताल में 26 फरवरी को सामने आई मेडिकल लापरवाही अब तक सवालों के घेरे में है। महिला वार्ड में लगाए गए एनेस्थीसिया इंजेक्शन से पाँच महिलाओं की अस्थायी रूप से याददाश्त चली गई थी। यह इंजेक्शन गुजरात की ब्लैकलिस्टेड कंपनी Radiant Parenterals Limited द्वारा सप्लाई किया गया था।
इस गंभीर लापरवाही को लेकर प्रदेश भर में आक्रोश फैला, जिसके बाद संजय गांधी अस्पताल प्रशासन ने जांच कमेटी गठित की। जांच के बाद कार्रवाई करते हुए केवल स्टोर कीपर प्रवीण उपाध्याय को निलंबित कर दिया गया। आरोप है कि इंजेक्शन का वही बैच उसने ही वार्ड में जारी किया था।

श्याम शाह मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. सुनील अग्रवाल ने पुष्टि की कि स्टोर कीपर को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि सभी महिलाएं अब सामान्य स्थिति में हैं और उनकी सेहत पर नजर रखी जा रही है।
कार्रवाई पर सवाल, बड़ी लापरवाही का छोटा निष्कर्ष?
सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी लापरवाही में केवल स्टोर कीपर को जिम्मेदार ठहराना कहां तक न्यायोचित है? क्या अस्पताल प्रशासन, सप्लाई विभाग और दवा चयन प्रक्रिया पर कोई जिम्मेदारी तय नहीं होती? इस पूरे मामले में अब तक सिर्फ एक व्यक्ति पर कार्रवाई होना एक तरह से मामले को दबाने का प्रयास भी माना जा रहा है।
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
रीवा का मामला कोई पहला नहीं है। जनवरी 2025 में शिवपुरी जिले में भी इसी तरह की घटना सामने आई थी, जहां 6 से ज्यादा महिलाओं की याददाश्त चली गई थी। उस समय भी रेडिएंट कंपनी के इंजेक्शन लगाए जाने की आशंका जताई गई थी, लेकिन 3 महीने बाद भी वहां की जांच अधूरी है और रिपोर्ट लंबित पड़ी है।
यह भी पढ़िए:- देवसर में छात्र हित की बात करने वाले संगठन मौन,40 साल बाद भी नहीं शुरू हुई पीजी की कक्षाएं
स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह की लापरवाहियाँ आम जनता की जान से खेलने के बराबर हैं। जब तक दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी और जवाबदेही तय नहीं की जाएगी, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी। सवाल उठता है — क्या स्टोर कीपर ही पूरे सिस्टम की नाकामी का अकेला जिम्मेदार है?