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रीवा में जहर बनकर बिखर रहा अस्पताल का कचरा! संजय गांधी अस्पताल के पीछे मौत का अड्डा?

रीवा (मध्यप्रदेश)।
क्या आपने कभी सोचा है कि जो अस्पताल इलाज का केंद्र होना चाहिए, वहीं से बीमारी फैलने लगे?
विंध्य क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल — संजय गांधी हॉस्पिटल, रीवा, इन दिनों गंभीर लापरवाही का केंद्र बन गया है। हॉस्पिटल के ठीक पीछे भारी मात्रा में ज़हरीला बायोमेडिकल वेस्ट खुले में फेंका जा रहा है। और ये महज एक लापरवाही नहीं, एक जानलेवा अपराध की तरफ इशारा कर रहा है।

खुले में जहर: खून से सनी पट्टियाँ, इंजेक्शन और ब्लड बैग!

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मर्चुरी की ओर जाने वाले रास्ते पर — बिल्कुल खुले में — ऐसे खतरनाक कचरे का ढेर लगा है जिसमें इस्तेमाल की गई सीरिंज, इंजेक्शन, ब्लड बैग्स, खून सनी पट्टियाँ, और एक्सपायर्ड दवाएं पड़ी हैं।
ना कोई ढक्कन, ना डस्टबिन, ना सेफ्टी बॉक्स — और न ही कोई चेतावनी।
यह सब उस जगह हो रहा है, जहां रोजाना सैकड़ों मरीज, तीमारदार, सफाईकर्मी और मवेशी आते-जाते हैं। एक चूक — और संक्रमण की चेन बन सकती है।

प्रशासन की चुप्पी — लापरवाही या साजिश?

जब इस विषय पर संजय गांधी अस्पताल प्रबंधन से प्रतिक्रिया मांगी गई, तो कोई भी अधिकारी कैमरे के सामने आने को तैयार नहीं हुआ। अंदरखाने से खबर है कि स्टाफ ने कई बार प्रबंधन को सूचित किया था, लेकिन “अभी टेंडर नहीं हुआ है” जैसे बहाने बना दिए गए।
क्या यह प्रशासन की जानबूझकर की गई अनदेखी है? या फिर अस्पताल की सफाई व्यवस्था में चल रहा कोई बड़ा घोटाला?

भारत सरकार की गाइडलाइन की खुली अवहेलना

साल 2016 में केंद्र सरकार ने Bio-Medical Waste Management Rules लागू किए थे।
इन नियमों के तहत,

  • हर अस्पताल को बायो वेस्ट का सुरक्षित संग्रहण
  • रंगबिरंगे बायो-बिन्स
  • और हाई-टेक ट्रीटमेंट प्लांट्स के जरिए उसका निस्तारण करना अनिवार्य है।
    लेकिन रीवा के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में इन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं
    इस लापरवाही पर कानून कहता है –

5 साल तक की जेल और 1 लाख रुपये जुर्माना।
तो सवाल उठता है – क्या अब अस्पताल प्रशासन पर कार्रवाई होगी? या फिर कोई हादसा होने का इंतजार है?

बच्चे, कर्मचारी और जानवर — कौन है सुरक्षित?

खुले में पड़े इस कचरे से बच्चों का संक्रमित होना बेहद आसान है। कई स्थानीय बच्चे यहां खेलते हुए देखे गए हैं।
सफाईकर्मी बिना किसी सुरक्षा उपकरण के इस क्षेत्र से गुजरते हैं। और आवारा पशु इस कचरे को मुंह में दबाकर दूर तक ले जाते हैं, जिससे संक्रमण दूर-दूर तक फैल सकता है।

अब जनता का सवाल सीधा है —

  • रीवा का सबसे बड़ा अस्पताल अगर इस तरह ‘मौत का अड्डा’ बन जाए तो शासन-प्रशासन क्या कर रहा है?
  • क्या स्वास्थ्य विभाग की टीम कभी निरीक्षण पर आती है या सिर्फ कागजों पर सब ‘ठीक’ है?

अब क्या हो सकता है?

  1. मजिस्ट्रियल जांच की मांग ज़ोर पकड़ रही है।
  2. एनजीओ और सामाजिक संगठन इस मामले को हाईकोर्ट तक ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।
  3. RTI दाखिल कर अस्पताल का सफाई बजट और ठेके की जानकारी मांगी जा रही है।

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अगर अभी नहीं चेते, तो रीवा में संक्रमण की एक नई लहर की शुरुआत इसी लापरवाही से हो सकती है।
अस्पतालों को इलाज का केंद्र माना जाता है — लेकिन जब वहीं से बीमारी फूटे, तो सिस्टम की सर्जरी अब ज़रूरी है

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