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रीवा: शिक्षा विभाग की अनदेखी या प्रशासनिक मज़ाक? दो स्कूलों में दो-दो प्राचार्य, 125 से अधिक स्कूलों में कोई नहीं

रीवा जिले में शिक्षा विभाग की एक बड़ी लापरवाही सामने आई है, जिससे पूरे प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। जिले के दो सरकारी स्कूलों में दो-दो प्राचार्य पदस्थ कर दिए गए हैं, जबकि जिले में 125 से अधिक शासकीय स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी स्थायी प्राचार्य नहीं है।

प्राचार्य विहीन स्कूलों के बीच दोहरा आदेश

जानकारी के अनुसार, शासकीय हाई स्कूल भुंडहा और शासकीय हाई स्कूल मैदानी में शिक्षा विभाग ने एक नहीं, बल्कि दो-दो प्राचार्य नियुक्त कर दिए हैं। भुंडहा स्कूल में सुधा तिवारी और प्रवीण शुक्ला, जबकि मैदानी स्कूल में विनोद शंकर अग्निहोत्री और सीधी जिले से एक अन्य शिक्षक को स्थानांतरित कर ज्वाइन करा दिया गया है।

चौंकाने वाली बात यह है कि सभी चारों शिक्षक संबंधित स्कूलों में प्राचार्य के रूप में ज्वाइन भी कर चुके हैं, जिससे स्कूल स्टाफ के साथ-साथ जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) भी असमंजस की स्थिति में हैं।

125 स्कूल बिना प्राचार्य, फिर भी दोहरापन क्यों?

वर्तमान में जिले के 125 से अधिक हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल ऐसे हैं, जहां प्राचार्य की नियमित नियुक्ति नहीं हुई है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जहां एक भी प्राचार्य नहीं है, वहां पद खाली छोड़ने की बजाय एक ही स्कूल में दो प्राचार्य भेजना किस सोच का परिणाम है?

सीएम राइज योजना भी सवालों के घेरे में

सरकार की सीएम राइज योजना के तहत कई स्कूलों के नाम और भवन तो बदल दिए गए, लेकिन शैक्षणिक नेतृत्व की रीढ़ माने जाने वाले प्राचार्य की नियुक्ति अब तक अधूरी है। स्थिति यह है कि नाम ‘राइज’ हो गया लेकिन व्यवस्थाएं ‘फॉल’ की ओर बढ़ रही हैं।

शिक्षकों और छात्रों में भ्रम की स्थिति

स्कूलों में दो-दो प्राचार्य होने से शिक्षकों में असमंजस और प्रशासनिक भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। यह न केवल शैक्षणिक कार्यों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि छात्रों के हितों को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

प्रशासनिक चूक या सिस्टम फेल?

यह पूरी स्थिति केवल एक स्थानांतरण आदेश की चूक नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि शिक्षा विभाग की अंदरूनी प्रणाली किस कदर दिशाहीन हो चुकी है। ऐसा प्रतीत होता है कि आदेश पारित करने से पहले कोई समन्वय या समीक्षा नहीं की गई, और न ही यह जांचा गया कि कौन सा स्कूल पहले से प्राचार्यविहीन है।

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जिला शिक्षा अधिकारी और विभागीय अधिकारी इस स्थिति से कैसे निपटते हैं, यह देखना बाकी है। लेकिन यदि जल्द ही इस भ्रम को दूर नहीं किया गया, तो आने वाले समय में स्कूलों की कार्यप्रणाली और शिक्षण व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा सकती है।

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