रीवा, मध्यप्रदेश – मध्यप्रदेश के रीवा जिले में शिक्षा विभाग से जुड़ा एक चौंकाने वाला फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसने सरकारी नियुक्ति प्रक्रिया और विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक महिला, जो न कभी सरकारी शिक्षक रही और न ही उसका कोई बेटा है, उसके नाम पर एक युवक को अनुकंपा नियुक्ति दे दी गई। यह नियुक्ति न केवल वैध दस्तावेजों की धज्जियां उड़ाती है, बल्कि यह भी उजागर करती है कि विभागीय प्रक्रियाएं कितनी सतही और लापरवाह हो चुकी हैं।
क्या है पूरा मामला?
मामला रीवा जिले के शिक्षा विभाग से जुड़ा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, एक बृजेश कुमार कोल नामक युवक को शिक्षा विभाग में अनुकंपा नियुक्ति दे दी गई। नियुक्ति आदेश में उल्लेख किया गया कि उसकी मां बेलाकली कोल, जो शासकीय प्राथमिक शाला ढेरा में सहायक शिक्षक थीं, उनका 16 मई 2023 को निधन हो गया, और उसी आधार पर बेटे को नौकरी दी गई।
लेकिन सच्चाई तब सामने आई जब महिला बेलाकली कोल से खुद संपर्क किया गया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे न कभी शिक्षा विभाग में कार्यरत थीं, न ही उनकी मृत्यु हुई है, और न ही उनका कोई बेटा है, जिसका नाम बृजेश कुमार हो। यानी कि न केवल दस्तावेज फर्जी थे, बल्कि रिश्तेदारी भी पूरी तरह मनगढ़ंत थी।
डीईओ ने खुद जारी किया था फर्जी आदेश
इस नियुक्ति आदेश पर जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) के हस्ताक्षर थे, और उसी के आधार पर फर्जी युवक ने विद्यालय में जॉइनिंग भी दे दी थी। जब शिकायत आई तो विभाग में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में एक जांच समिति गठित की गई और महज दो दिन में नियुक्ति आदेश रद्द कर दिया गया।
लेकिन सवाल यह है कि जब अनुकंपा नियुक्ति प्रक्रिया में 21 से अधिक दस्तावेजों की जांच होती है, जिसमें मृतक कर्मचारी के सेवा अभिलेख, मृत्यु प्रमाण पत्र, वारिस प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण, जन्मतिथि, शिक्षा प्रमाण पत्र आदि शामिल होते हैं, तो इतनी बड़ी चूक आखिर कैसे हो गई?

व्यवस्था में भारी खामियां उजागर
इस मामले ने दिखा दिया है कि शिक्षा विभाग में नियुक्ति संबंधी प्रक्रियाएं कितनी कमजोर हैं। यदि एक व्यक्ति बिना किसी पूर्व सेवा रिकॉर्ड और बिना किसी वैध रिश्ता साबित किए सरकारी नौकरी पा सकता है, तो फिर यह अन्य मामलों में भी भ्रष्टाचार और घोटालों की आशंका को बल देता है।
एक तरफ सरकार बेरोजगारों के लिए रोजगार मेले और डिजिटल सत्यापन प्रणाली जैसे उपायों का प्रचार करती है, वहीं दूसरी ओर सरकारी सिस्टम की नाक के नीचे इस तरह की धांधली हो जाना बेहद गंभीर है।
अब क्या होगा आगे?
सूत्रों के अनुसार, अब मामले की आंतरिक जांच के साथ-साथ पुलिस जांच की भी सिफारिश की जा सकती है। यदि दस्तावेज़ों में फर्जीवाड़ा सिद्ध होता है, तो फर्जी नियुक्ति पाने वाले व्यक्ति और इसमें सहयोग देने वाले अधिकारियों पर आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है।
इसके साथ ही विभाग के भीतर दस्तावेज सत्यापन प्रणाली को और मजबूत करने की आवश्यकता बताई जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते इस तरह के मामलों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो यह फर्जीवाड़े भविष्य में और भी गंभीर रूप ले सकते हैं।
यह भी पढ़ें:- रीवा-सिरमौर मार्ग पर 24 घंटे में तीन सड़क हादसे, पांच की मौत, तीन घायल
रीवा का यह मामला न केवल एक व्यक्ति द्वारा सरकारी तंत्र के दुरुपयोग का उदाहरण है, बल्कि यह प्रशासनिक लापरवाही का भी ज्वलंत प्रमाण है। शिक्षा जैसे संवेदनशील विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही अब समय की मांग है, जिससे योग्य उम्मीदवारों को उनका हक मिल सके और फर्जीवाड़ों पर सख्त लगाम लगाई जा सके।