रीवा (म.प्र.)
मध्यप्रदेश के रीवा जिले में लोक निर्माण विभाग (PWD) में एक बड़े भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने का मामला सामने आया है। विभाग के प्रभारी कार्यपालन यंत्री विनय कुमार श्रीवास्तव पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उन्होंने रीवा और शहडोल संभाग में हुए निर्माण कार्यों में नियमों को ताक पर रखकर 50 करोड़ रुपए से अधिक की वित्तीय अनियमितता की है। इस आरोप ने सरकारी तंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
कई योजनाओं में नियमों की खुली अवहेलना
श्री श्रीवास्तव पर आरोप है कि उन्होंने सरकारी दिशा-निर्देशों और वित्तीय नियमों का उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग से ठेके दिए। यही नहीं, उन्होंने अपने कथित पसंदीदा संविदाकारों को फायदा पहुंचाने के लिए योजनाओं की लागत को बिना वैधानिक अनुमति के 10 प्रतिशत की स्वीकृत सीमा से बढ़ाकर 300 प्रतिशत तक बढ़ा दिया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कई मामलों में बिना बैंक गारंटी के करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिया गया, जो न सिर्फ विभागीय लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि भ्रष्टाचार की गहराई को भी उजागर करता है।
EOW और शासन से की गई लिखित शिकायत
इस पूरे प्रकरण को अधिवक्ता बीके माला ने गंभीरता से लेते हुए इसकी लिखित शिकायत आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) रीवा और राज्य शासन को भेजी है। अधिवक्ता ने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए, ताकि दोषी अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जा सके।
शिकायतकर्ता के अनुसार यह कोई सामान्य प्रशासनिक भूल नहीं, बल्कि एक सुनियोजित वित्तीय अपराध है, जिससे न केवल राज्य को भारी नुकसान हुआ है, बल्कि सरकारी सिस्टम की साख भी दांव पर लगी है।

मामला बना सरकार के लिए चुनौती
इस घोटाले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि राज्य के निर्माण कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर गहरे सवाल हैं। खासकर जब बड़े ठेके और भुगतान बिना प्रक्रिया के पूरे किए जा रहे हैं, तो यह जानना आवश्यक है कि निगरानी तंत्र कहां चूक रहा है?
जनता के पैसों से संचालित योजनाओं में इस प्रकार की अनियमितताएं प्रशासन के प्रति लोगों के विश्वास को कमजोर करती हैं। यदि इस मामले में त्वरित जांच और कड़ी कार्रवाई नहीं होती है, तो यह अन्य भ्रष्ट अधिकारियों के लिए एक गलत संदेश भी बन सकता है।
क्या होगी कार्रवाई या फिर से पड़ेगा ठंडा?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह मामला भी पूर्व के घोटालों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा, या फिर शासन-प्रशासन इस पर त्वरित, निष्पक्ष और पारदर्शी कार्रवाई करेगा?
यदि ईओडब्ल्यू इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को बेनकाब करता है, तो यह प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक साहसिक कदम होगा। वहीं यदि शिकायत को नजरअंदाज कर दिया गया, तो यह स्पष्ट संकेत होगा कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई की मंशा सिर्फ कागजों तक सीमित है।
यह भी पढ़िए – सीधी सांसद डॉ. राजेश मिश्रा ने पेश की इंसानियत की मिसाल, दुखी परिवार को दिलाया न्याय और सम्मान
रीवा का यह मामला सिर्फ एक जिले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रदेश में लोक निर्माण विभाग की कार्यप्रणाली और उसके नियामक ढांचे पर एक करारा प्रश्नचिन्ह है। ऐसे में ज़रूरत है कि शासन इस शिकायत को गंभीरता से ले, दोषियों को चिन्हित कर उनके विरुद्ध कानून के अनुसार कड़ी कार्रवाई करे — ताकि जनता का विश्वास लौटे और सिस्टम में जवाबदेही स्थापित हो सके।