मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में जहां एक ओर जनता के मुद्दों पर गरमागरम बहस हो रही है, वहीं दूसरी ओर जनप्रतिनिधि खुद ही कानूनों की अनदेखी करते नजर आए। विधानसभा भवन के बाहर विस्तार न्यूज़ के रियलिटी चेक में खुलासा हुआ कि कई विधायक बिना सीट बेल्ट लगाए लग्जरी गाड़ियों में विधानसभा पहुंचे।
विधायकों ने भले ही सदन में नियम-कायदों की बात की हो, लेकिन जब बात खुद के पालन की आई तो बहाने बनाने लगे। एक तरफ आम जनता को हेलमेट न पहनने पर चालान थमा दिया जाता है, वहीं दूसरी तरफ विधायकों का यह व्यवहार कई सवाल खड़े करता है।
कैमरे पर पकड़े गए विधायक, नियमों की उड़ाई धज्जिया
विधानसभा भवन के बाहर जैसे ही विधायक पहुंचे, न्यूज़ कैमरों ने उन्हें बिना सीट बेल्ट लगाए गाड़ी से उतरते हुए रिकॉर्ड किया। कुछ ने सीट बेल्ट की जरूरत को स्वीकार किया, तो कुछ ने कहा, “रास्ता पास में है, इसलिए नहीं लगाया।”
जब विधायक से पूछा गया कि सीट बेल्ट क्यों नहीं लगाया, तो कुछ ने जवाब दिया कि ड्राइवर ने लगाया था, वो काफी है। वहीं कुछ ने कहा कि वे लंबी दूरी पर सीट बेल्ट जरूर लगाते हैं। लेकिन यह तर्क कानून के नियमों पर खरा नहीं उतरता।
रामसिया भारती बोलीं – “सीट बेल्ट जरूरी, आज नहीं लगाया”
विधायक रामसिया भारती, जिन्होंने सीट बेल्ट नहीं लगाया था, ने कैमरे पर कहा –
“सीट बेल्ट लगाना जरूरी है, लेकिन आज नहीं लगाया। लंबी दूरी पर हम हमेशा सीट बेल्ट लगाते हैं। ड्राइवर ने लगाया है। नियम सभी के लिए समान हैं।”
उनका यह जवाब नियमों की अनदेखी को स्वीकार करने जैसा था।

पूर्व मंत्री बिसाहू लाल सिंह का तर्क – “पास की दूरी थी”
बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बिसाहू लाल सिंह भी बिना सीट बेल्ट लगाए विधानसभा पहुंचे। जब सवाल पूछा गया, तो बोले –
“हम हमेशा सीट बेल्ट लगाते हैं, लेकिन विधानसभा पास है, इसलिए आज नहीं लगाया।”
हालांकि, मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार, चाहे दूरी कितनी भी हो, ड्राइविंग के दौरान सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है।
सवाल उठता है – क्या नियम सिर्फ आम लोगों के लिए हैं?
जनप्रतिनिधि जब सार्वजनिक मंचों से नियमों के पालन का संदेश देते हैं, तो स्वयं उनका पालन न करना दोहरी मानसिकता को दर्शाता है। सवाल यह भी है कि जब आम आदमी ट्रैफिक नियम तोड़ता है, तो पुलिस तुरंत चालान काटती है, लेकिन जब विधायक और मंत्री नियम तोड़ें तो क्या उन पर भी कार्रवाई होगी?
क्या ये “कानून सबके लिए बराबर है” वाला सिद्धांत सिर्फ भाषणों तक सीमित है?
यह भी पढ़िए – सीधी सांसद डॉ. राजेश मिश्रा ने पेश की इंसानियत की मिसाल, दुखी परिवार को दिलाया न्याय और सम्मान
जनता में रोष – “अगर नेता नहीं मानेंगे, तो हम क्यों मानें?”
विधानसभा गेट पर मौजूद कुछ आम नागरिकों ने भी इस पर सवाल उठाया। एक युवा ने कहा –
“जब नेता खुद नियम नहीं मानते, तो फिर हमें किस मुंह से समझाते हैं? अगर चालान काटना है, तो सबसे पहले इन पर कार्रवाई हो।”
नियमों की प्रतिष्ठा नेताओं के आचरण से तय होती है
इस घटना ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि कानून का सम्मान केवल भाषणों से नहीं, बल्कि आचरण से होता है। नेताओं को जनता के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, न कि दोहरे मापदंड अपनाने चाहिए।
जब माननीय ही नियम तोड़ेंगे, तो सड़क पर आम नागरिक से अपेक्षा करना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है।