कटनी ज़िले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के ज़रिए गरीबों तक अनाज पहुँचाने की सरकारी योजना भारी लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। ज़िले के अलग-अलग वेयरहाउसों में करीब 5 हज़ार टन गेहूं भंडारित पड़ा-पड़ा सड़ चुका है। कहीं अनाज पर कीड़े लग गए हैं तो कहीं वह आटे में तब्दील हो गया। इस हालत ने न केवल नागरिक आपूर्ति निगम (नान), वेयरहाउस प्रबंधन और ज़िला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि गरीबों के हक का अनाज ही सबसे ज्यादा उपेक्षा का शिकार हो रहा है।
2019 से 2022 तक का अनाज पड़ा सड़ रहा
जानकारी के मुताबिक, 2019-20, 2020-21 और 2021-22 तक खरीदा गया गेहूं अब भी ज़िले के वेयरहाउसों में पड़ा हुआ है। केजी चौदह, राधिका, ओम साईराम, श्याभवी, पैक्स बराज, पैक्स विजयराघवगढ़ और श्रीनिवासन वेयरहाउस में यह अनाज भंडारित था। मार्च 2022 में भारतीय खाद्य निगम ने इसे अमानक और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक घोषित कर दिया था। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
किराए में करोड़ों, निगरानी शून्य
विडंबना यह है कि सरकार ने वेयरहाउस मालिकों को अनाज की सुरक्षा के लिए हर साल करोड़ों रुपए किराए के रूप में दिए। 2019-20 में 3.81 करोड़, 2020-21 में 4.70 करोड़ और 2021-22 में 3.61 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान भंडारण पर किया गया। यानी अनाज की सुरक्षा के नाम पर सरकारी खजाने से मोटी रकम खर्च की गई, लेकिन गरीबों के निवाले की रक्षा नहीं हो सकी।

जिम्मेदार एजेंसियों की लापरवाही
नान, वेयरहाउस प्रबंधन और डीसीसी कमेटी का दावा है कि खराब अनाज को “साफ” कराया जाएगा और उठाव की प्रक्रिया शुरू होगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब अनाज को तीन साल पहले ही अमानक घोषित कर दिया गया था, तो आखिर क्यों इसे गोदामों में सड़ने दिया गया? क्या गरीबों के हक का अनाज महज़ कागज़ी कार्रवाई में ही बर्बाद होता रहा?
उठाव और कार्रवाई के दावे
नान प्रबंधक देवेंद्र तिवारी ने कहा कि खराब हुए अनाज की डीसीसी की प्रक्रिया पूरी हो गई है और टेंडर के बाद नियमानुसार उठाव कराया जाएगा। वहीं, डीसीसी कमेटी का कहना है कि संबंधित अधिकारियों और जिम्मेदार एजेंसियों पर कार्रवाई की जाएगी।
बड़ा सवाल – क्या यही अनाज गरीबों की थाली तक जाएगा?
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जो गेहूं गोदामों में पांच साल से पड़ा सड़ रहा है, उसी को “साफ” करके गरीबों के लिए उपयोग में लाने की बात कही जा रही है। सवाल यह उठता है कि क्या कीड़े लगे गेहूं से गरीबों का पेट भरा जाएगा? क्या जिम्मेदार अधिकारी खुद इस अनाज को खाने लायक मानेंगे?
कटनी ज़िले का यह मामला न केवल सरकारी तंत्र की नाकामी दिखाता है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि गरीबों के हक का अनाज किस तरह भ्रष्टाचार और लापरवाही की भेंट चढ़ता रहा है। अब देखना यह होगा कि कार्रवाई के नाम पर महज़ कागज़ी आश्वासन दिए जाते हैं या फिर वास्तव में जिम्मेदारों पर कठोर कदम उठाए जाते हैं।
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यह खबर स्थानीय प्रशासन के लिए बड़ा सवाल खड़ा करती है – गरीबों का हक कब तक गोदामों में सड़ता रहेगा?