मध्यप्रदेश के शहडोल जिले से एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करने वाली खबर सामने आई है। जयसिंहनगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने से एक वृद्ध की दम घुटने से मौत हो गई है, वहीं एक महिला की हालत अत्यंत गंभीर बताई जा रही है।ये वही अस्पताल है, जिसे लगभग 10 करोड़ रुपये की लागत से आधुनिक संसाधनों से लैस कर “मॉडल हॉस्पिटल” के रूप में प्रचारित किया गया था। मगर अफ़सोस… आधुनिकता के नाम पर दीवारें तो बन गईं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जिंदगियां दम तोड़ रही हैं।
वार्ड नंबर 2 के वृद्ध की मौत, बिजली गई और साथ ही गई ‘सांसें’
प्राप्त जानकारी के अनुसार, जयसिंहनगर के वार्ड नं. 2 निवासी 65 वर्षीय योगेश्वर पांडे को मंगलवार दोपहर अचानक सांस लेने में तकलीफ के चलते परिजनों द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया था। लेकिन इसी बीच अस्पताल में बिजली गुल हो गई और बैकअप की कोई ठोस व्यवस्था नहीं होने के कारण ऑक्सीजन सप्लाई पूरी तरह बंद हो गई।सूत्रों के अनुसार, लगभग आधे घंटे तक मरीज को ऑक्सीजन नहीं मिल सका, जिससे उनकी हालत बिगड़ती चली गई और अंततः दम घुटने से उनकी मौत हो गई।एक और महिला को भी नहीं मिला ऑक्सीजन, शहडोल किया गया रेफरइस घटना के कुछ देर बाद एक महिला मरीज को भी गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया, लेकिन वहां पहले से चल रही बिजली और ऑक्सीजन सप्लाई की समस्या के चलते उसे तत्काल प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल सका। आनन-फानन में उसे शहडोल जिला अस्पताल रेफर किया गया, जहां उसकी हालत नाज़ुक बनी हुई है।
10 करोड़ की लागत लेकिन कोई बैकअप प्लान नहीं?
इस घटना ने प्रशासन के उन दावों की पोल खोल दी है, जिसमें इस अस्पताल को “संपूर्ण सुविधा युक्त मॉडल हॉस्पिटल” बताया गया था।
10 करोड़ रुपये की लागत से बने इस केंद्र में न तो जनरेटर चालू हालत में था, न ही कोई ऑक्सीजन बैकअप प्लान।क्या यह सवाल नहीं उठता कि इतनी भारी-भरकम राशि कहां खर्च की गई? दीवारों और रंगाई-पुताई पर? या फिर फाइलों में ही आधुनिकता दर्ज करा ली गई?
यह कोई पहला मामला नहीं है जब शहडोल या आसपास के इलाकों में स्वास्थ्य अव्यवस्था के कारण जानें गई हों। कोविड काल की भयावहता आज भी लोगों के जेहन में ताजा है, जब ऑक्सीजन और बेड की कमी से सैकड़ों लोगों ने दम तोड़ा था।सरकार और स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सिर्फ इमारतें बनवाने तक सीमित नहीं होनी चाहिए।
संवेदनशीलता, सतर्कता और जवाबदेही अब दिखानी पड़ेगी।अगर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद एक वृद्ध को ऑक्सीजन नहीं मिल पाता, तो यह केवल ‘दुर्घटना’ नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की ‘हत्या’ है।

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मृतक योगेश्वर पांडे के परिजनों ने प्रशासन और स्वास्थ्य अमले पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि “समय पर ऑक्सीजन मिल जाती तो शायद आज हमारे बाबा जिंदा होते।”स्थानीय लोगों ने घटना की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।
वहीं प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।