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श्योपुर: गांव के नाम पर शहर में चल रहे कियोस्क बैंक, न ग्रामीणों को सुविधा न पत्रकार को सुरक्षा

श्योपुर, मध्यप्रदेश
सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं गांव तक पहुंचाने के लिए कियोस्क बैंक सेवा की शुरुआत की थी। मकसद था कि ग्रामीणों को उनके ही गांव में पैसे निकालने, जमा करने और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने की सुविधा मिले। लेकिन श्योपुर जिले में यह योजना शहरी चालाकियों और प्रशासनिक लापरवाही का शिकार होती दिख रही है।

कागजों में गांव, हकीकत में शहर

कई कियोस्क बैंक ऐसे हैं जिन्हें गांवों के नाम पर स्वीकृति मिली, लेकिन वे वास्तव में कराहल जैसे शहरी इलाकों में संचालित हो रहे हैं। नतीजतन ग्रामीणों को बैंकिंग कार्यों के लिए शहर आना पड़ रहा है। इससे न केवल समय और पैसे की बर्बादी हो रही है, बल्कि योजना का असली उद्देश्य भी विफल हो रहा है।

ग्रामीणों का आरोप है कि कियोस्क संचालक अपनी मनमानी कर रहे हैं और प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। नियमानुसार, कियोस्क सेंटरों को उन्हीं स्थानों पर चलाना चाहिए जहां की स्वीकृति मिली हो, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके विपरीत है।

एसडीएम का बयान
इस मामले में एसडीएम मनोज गढ़वाल ने कहा,

“अगर कोई कियोस्क बैंक नियत स्थान से हटकर संचालित हो रहा है तो उसे उसी स्थान पर संचालित करवाया जाएगा।”

लेकिन सवाल उठता है – क्या प्रशासन अब तक सोया हुआ था?

खबर छापने पर पत्रकार को धमकी

जब कराहल के पत्रकार धीरज परिहार ने इस घोटाले की परतें उजागर करनी शुरू कीं, तो उन्हें झूठे आरोपों और धमकियों का सामना करना पड़ा। पहले तो कियोस्क संचालकों ने थाने में उनके खिलाफ फर्जी आवेदन दिया। लेकिन जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो दबंगों ने उन्हें सरेबाजार धमकाया और जान से मारने की धमकी तक दे डाली।

धीरज परिहार ने अजाक थाने में शिकायत दर्ज कराई है और कहा,

“मैं लगातार इस भ्रष्टाचार को उजागर कर रहा हूं। लेकिन अब मुझे झूठे केस में फंसाने और जान से मारने की धमकी दी जा रही है।”

पुलिस और बैंक अधिकारियों की प्रतिक्रिया

अजाक थाना प्रभारी महाराज सिंह बघेल ने पत्रकार की शिकायत पर कहा,

“आवेदन मिला है, निष्पक्ष जांच कर आरोपियों पर कार्रवाई की जाएगी। किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।”

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, कराहल शाखा के मैनेजर शिवराज चौधरी ने बताया कि,

“जिन जगहों पर शिकायत मिली थी, वहां कियोस्क संचालकों को समझाइश दी गई है। अगर आगे भी गड़बड़ी मिली तो उनकी आईडी बंद कर दी जाएगी।”

क्या सवाल उठते हैं?

  • क्या कियोस्क बैंक की निगरानी के लिए कोई मजबूत प्रणाली है?
  • क्यों प्रशासन और बैंक अधिकारियों ने समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया?
  • क्या पत्रकारों की आवाज़ दबाने की कोशिशें लोकतंत्र पर हमला नहीं हैं?

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कियोस्क बैंक योजना गांवों को सशक्त करने के लिए लाई गई थी, लेकिन श्योपुर में यह भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता की भेंट चढ़ती दिख रही है। पत्रकारों को धमकी देना इस बात का संकेत है कि सच को दबाने की कोशिशें जारी हैं

अब देखना ये होगा कि प्रशासन इस मामले में कितनी सख्ती और पारदर्शिता से कार्रवाई करता है, या फिर यह मामला भी बाकी फाइलों की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।

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