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संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र की यूनिट नंबर-1 में तकनीकी गड़बड़ी ने खोली व्यवस्थागत खामियां

बिरसिंहपुर पाली, मध्यप्रदेश।
राज्य के प्रमुख ऊर्जा उत्पादक स्थलों में से एक संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र, एक बार फिर सवालों के घेरे में है। मंगठार स्थित इस प्लांट की 210 मेगावाट क्षमता वाली यूनिट नंबर-1 को हाल ही में 11 महीने बाद चालू किया गया था, लेकिन मात्र दो दिन में ही यह फिर से बंद हो गई। ब्वॉयलर ट्यूब में लीकेज के चलते उत्पादन पूरी तरह से बाधित हो गया, जिससे पूरे संयंत्र में हड़कंप मच गया

बार-बार की तकनीकी गड़बड़ी, व्यवस्थागत लापरवाही का संकेत

यह कोई पहली बार नहीं है जब यूनिट नंबर-1 बंद हुई हो। बीते एक वर्ष से यह यूनिट बंद पड़ी थी, और हाल ही में इसमें सुधार के बाद इसे फिर से शुरू किया गया था। लेकिन सिर्फ दो दिन बाद ही ब्वॉयलर ट्यूब में लीकेज ने एक बार फिर प्रबंधन की तकनीकी दक्षता और निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मुख्य अभियंता एच.के. त्रिपाठी ने बताया कि यूनिट को दोबारा चालू करने में तीन दिन का वक्त लग सकता है, लेकिन सवाल यही है कि 11 महीने की मरम्मत और निरीक्षण के बावजूद ऐसी गड़बड़ी दो दिन में कैसे सामने आ गई? क्या मरम्मत महज़ खानापूर्ति थी? क्या तकनीकी परीक्षणों को गंभीरता से नहीं लिया गया?

सिस्टमेटिक फेल्योर का संकेत

ब्वॉयलर ट्यूब में बार-बार लीकेज होना सिर्फ एक साधारण तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि यह व्यवस्थागत विफलता (Systemic Failure) का स्पष्ट संकेत है। यह स्थिति बताती है कि प्रबंधन ने न तो गुणवत्ता नियंत्रण को पर्याप्त महत्व दिया, और न ही तकनीकी निरीक्षण को। यदि यही स्थिति बनी रही, तो भविष्य में इससे और गंभीर समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।

आर्थिक नुकसान और बिजली संकट की आशंका

यूनिट बंद होने की वजह से हर दिन लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। यह सिर्फ बिजली उत्पादन की हानि नहीं है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था और राजस्व प्रणाली पर भी दबाव डाल रहा है। प्लांट से जुड़े क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति बाधित होने की भी आशंका है, जिससे आम नागरिकों और उद्योगों को परेशानी झेलनी पड़ सकती है।

इसके साथ ही, बिजली उत्पादन के रुकने से सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ रहा है। वैकल्पिक स्रोतों से बिजली खरीदना महंगा सौदा होता है, जिससे बजट पर सीधा असर पड़ता है।

प्रबंधन की जवाबदेही जरूरी

स्थिति यह दर्शाती है कि संयंत्र के प्रबंधन ने अपनी जवाबदेही निभाने में कमी छोड़ी है। इतना बड़ा प्लांट, जिसकी यूनिट एक साल तक बंद रही हो, उसे चालू करने के बाद सिर्फ दो दिन में बंद होना – यह कोई छोटी चूक नहीं है। यह मामला अब सिर्फ तकनीकी न होकर प्रशासनिक और प्रबंधन विफलता का भी हो गया है।

क्या होनी चाहिए अगली कार्रवाई?

  • एक स्वतंत्र तकनीकी समिति द्वारा पूरी यूनिट का ऑडिट कराया जाए।
  • बार-बार हो रही लीकेज की मुख्य वजहों का स्थायी समाधान निकाला जाए।
  • दोषी अधिकारियों और संवेदकों की जवाबदेही तय की जाए।
  • भविष्य में ऐसी गड़बड़ी ना हो, इसके लिए प्लांट संचालन की पारदर्शिता और तकनीकी निगरानी बढ़ाई जाए।

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बिजली उत्पादन जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र में ऐसी लापरवाही ना केवल सरकारी संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि यह आम जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाता है। इस बार संजय गांधी ताप विद्युत केंद्र की यूनिट नंबर-1 की विफलता, सिर्फ एक तकनीकी मुद्दा नहीं है – यह व्यवस्था के खोखलेपन का एक और चेहरा है, जिसे अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

अब समय है, जब शासन और ऊर्जा विभाग को इस गंभीर लापरवाही पर सख्त रुख अपनाना चाहिए – ताकि आने वाले समय में न केवल बिजली उत्पादन सुचारू रहे, बल्कि जनता का भरोसा भी कायम रहे।

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