सतना, मध्यप्रदेश —
सरदार वल्लभ भाई पटेल शासकीय जिला चिकित्सालय, सतना में आशा कार्यकर्ताओं के लिए बनाए गए रेस्ट रूम की स्थिति इन दिनों चर्चा में है। जिस उद्देश्य से भारत सरकार ने इन रेस्ट रूम्स का निर्माण कराया था, वही उद्देश्य अब नजरअंदाज होता दिख रहा है। अस्पताल परिसर में मौजूद यह विश्राम कक्ष अब आरामगाह नहीं, बल्कि कबाड़खाना बन चुका है, जिससे न केवल आशा कार्यकर्ताओं को परेशानी हो रही है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीरता भी सवालों के घेरे में है।
कबाड़ का अड्डा बना रेस्ट रूम
2018 में केंद्र सरकार ने डिलीवरी प्वाइंट्स पर आने वाली आशा कार्यकर्ताओं के लिए रेस्ट रूम की योजना लागू की थी। इसका मकसद था कि दूरदराज से आने वाली महिला कार्यकर्ताओं को कुछ समय आराम करने की सुविधा मिले। लेकिन सतना जिला अस्पताल में यह सुविधा उपेक्षा का शिकार हो गई है। हाई डिपेंडेंसी यूनिट (HDU) के ठीक सामने बने रेस्ट रूम को अस्पताल प्रबंधन ने अनुपयोगी सामान रखने की जगह बना दिया है। फर्नीचर से लेकर पुराने मेडिकल उपकरण तक यहां ठूंसे गए हैं।
प्रतिदिन आते हैं दर्जनों आशा कार्यकर्ता
अस्पताल प्रबंधन के आंकड़ों के अनुसार, रोजाना 25 से 30 आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं को लेकर अस्पताल पहुंचती हैं। इनमें कई महिलाएं 70-80 किलोमीटर की दूरी तय करके आती हैं। इस सफर के बाद उन्हें कुछ देर सुस्ताने के लिए जगह भी न मिल पाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसी स्थिति में आशा कार्यकर्ताओं की कार्यक्षमता और स्वास्थ्य दोनों पर असर पड़ता है।

वैकल्पिक व्यवस्था भी असुविधाजनक
रेस्ट रूम की दुर्दशा को देखते हुए अस्पताल प्रशासन ने आशा कार्यकर्ताओं को “मदर्स वेटिंग एरिया” में रुकवाने की अस्थायी व्यवस्था की है। यह क्षेत्र उन माताओं के लिए बनाया गया था, जिनके नवजात शिशु SNCU (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में भर्ती हैं। ऐसे में दो अलग-अलग जरूरतों वाले समूहों को एक ही स्थान पर ठहराना दोनों के लिए असुविधाजनक और अव्यवस्थित है।
जल्द सुधार की उम्मीद
इस मामले को लेकर अस्पताल के आरएमओ डॉ. शरद दुबे ने स्वीकार किया कि रेस्ट रूम की स्थिति काफी खराब हो चुकी है। उन्होंने बताया कि रोगी कल्याण समिति (RKS) की बैठक में रेस्ट रूम के नवीनीकरण के लिए ₹1.5 करोड़ की राशि स्वीकृत की जा चुकी है। प्रबंधन की योजना है कि आशा कार्यकर्ताओं के लिए एक आधुनिक और वातानुकूलित रेस्ट रूम तैयार किया जाए, जिससे उन्हें सुविधा मिल सके और उनकी मेहनत का सम्मान हो।
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रेस्ट रूम की बदहाली सिर्फ एक कमरे की स्थिति नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की संवेदनहीनता को दर्शाती है। आशा कार्यकर्ता ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र की रीढ़ होती हैं, जो दिन-रात जनसेवा में जुटी रहती हैं। उनका सम्मान सिर्फ प्रशंसा से नहीं, बल्कि सुविधाएं देकर किया जाना चाहिए। सतना का यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं हम ज़मीनी स्वास्थ्य सेवाओं के मूल स्तंभों को अनदेखा तो नहीं कर रहे? आशा है कि नवीनीकरण की योजना जल्द धरातल पर उतरकर इन महिला कर्मियों को उनका हक दिलाएगी।