सतना (मध्यप्रदेश)
मध्य प्रदेश का सतना जिला इन दिनों चर्चा के केंद्र में है, लेकिन इस बार वजह न तो कोई विकास कार्य है और न ही कोई प्रशासनिक उपलब्धि, बल्कि तहसील कार्यालयों की चौंकाने वाली लापरवाहियां हैं। जिले में मात्र तीन दिन के भीतर ऐसे दो आय प्रमाण पत्र सामने आए हैं, जिनमें संबंधित व्यक्तियों की सालाना आय शून्य रुपये और तीन रुपये दर्ज की गई है। इन प्रमाणपत्रों ने न सिर्फ सोशल मीडिया पर तहलका मचाया है, बल्कि जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहला मामला: तीन रुपये की सालाना आय
22 जुलाई 2025 को कोठी तहसील से जारी एक आय प्रमाण पत्र ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी। इस दस्तावेज में रामस्वरूप पिता श्यामलाल, निवासी नयागांव की सालाना आय मात्र तीन रुपये दर्शाई गई थी। इतना ही नहीं, इस प्रमाण पत्र पर तहसीलदार सौरभ द्विवेदी के हस्ताक्षर भी मौजूद थे, जिससे दस्तावेज की वैधानिकता पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता।
मामले के सामने आने के बाद प्रशासन की ओर से सफाई दी गई कि यह एक तकनीकी त्रुटि थी, जिसमें संख्या दर्ज करते समय चूक हो गई। बाद में प्रमाण पत्र को निरस्त कर नया प्रमाण पत्र जारी किया गया, जिसमें रामस्वरूप की सालाना आय 30,000 रुपये बताई गई।
दूसरा मामला: ‘शून्य रुपये’ सालाना आय
इस घटना के महज तीन दिन बाद ही उचेहरा तहसील से एक और ऐसा मामला सामने आया, जिसने लापरवाही की सीमाओं को पार कर दिया। अमदरी गांव निवासी संदीप कुमार नामदेव को 7 अप्रैल 2025 को जारी एक आय प्रमाण पत्र में सालाना आय ‘शून्य रुपये’ दर्ज की गई है। यह प्रमाण पत्र प्राधिकृत अधिकारी रविकांत शर्मा के हस्ताक्षर से सत्यापित भी था।
अब यह प्रमाण पत्र भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और लोग पूछ रहे हैं — क्या संदीप कुमार भारत के सबसे गरीब व्यक्ति हैं? और यदि नहीं, तो तहसील कार्यालय ने बिना किसी आधार के यह प्रमाणपत्र कैसे जारी कर दिया?

प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल
इन दोनों मामलों ने एक गंभीर मुद्दा उजागर किया है — बिना किसी जांच-पड़ताल के प्रमाण पत्रों का निर्गमन। ये प्रमाणपत्र आम नागरिकों के लिए कई सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्तियों, आरक्षण और अन्य सुविधाओं के लिए अनिवार्य होते हैं। लेकिन जब ऐसे प्रमाणपत्रों में तथ्यात्मक गलतियां हों, तो इसका सीधा प्रभाव न केवल उस व्यक्ति पर पड़ता है, बल्कि शासन की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आ जाती है।
सोशल मीडिया पर गुस्सा और मज़ाक
इन घटनाओं के बाद सोशल मीडिया पर मज़ाकिया मीम्स और गुस्से से भरे पोस्ट्स की बाढ़ आ गई है। एक यूज़र ने लिखा – “शून्य रुपये सालाना आय? तो फिर ये आदमी जिंदा कैसे है?” वहीं कई लोगों ने सवाल उठाया है कि अगर ऐसे फर्जी प्रमाणपत्र जारी हो सकते हैं, तो कहीं सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा?
जांच की मांग और सुधार की दरकार
हालांकि प्रशासन ने कोठी मामले में प्रमाणपत्र को संशोधित कर दिया है, लेकिन सवाल उठते हैं — क्या यह केवल संख्या की गलती थी, या फिर प्रशासनिक लापरवाही का बड़ा उदाहरण? आम नागरिकों और स्थानीय सामाजिक संगठनों ने इन दोनों मामलों की जांच की मांग की है और प्रमाण पत्र निर्गमन की प्रक्रिया को पारदर्शी और डिजिटल करने की वकालत की है।
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सतना जिले से सामने आए इन दो मामलों ने एक बात तो साफ कर दी है — प्रशासनिक सिस्टम में कहीं न कहीं गंभीर खामियां हैं, जिन्हें तुरंत दुरुस्त करने की आवश्यकता है। अन्यथा, ऐसे फर्जी या त्रुटिपूर्ण दस्तावेजों के कारण न केवल वास्तविक पात्र वंचित रहेंगे, बल्कि सरकार की योजनाओं की साख भी दांव पर लग सकती है।