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सहकारिता विभाग के संयुक्त आयुक्त पांडेय पर घूस का आरोप या साजिश? जांच की मांग ने बदला घटनाक्रम

सागर (मध्यप्रदेश)
सागर संभाग के सहकारिता विभाग में कार्यरत संयुक्त आयुक्त शिवेंद्र देव पांडेय पर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) द्वारा की गई कार्रवाई के बाद अब मामला एक नए मोड़ पर आ खड़ा हुआ है।
जहां एक ओर ईओडब्ल्यू ने पांडेय को 50 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ने का दावा किया, वहीं दूसरी ओर मप्र सहकारिता विभाग राजपत्रित अधिकारी संघ ने यह कहते हुए बड़ा आरोप लगाया है कि पांडेय को एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है।

क्या थी घटना?

बुधवार को EOW की टीम ने सागर स्थित दफ्तर में संयुक्त आयुक्त पांडेय को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। उन पर आरोप है कि उन्होंने छतरपुर की पनवारी सेवा सहकारी समिति में एक सेल्समैन की नियुक्ति के एवज में शिकायतकर्ता से 50,000 रुपये की रिश्वत मांगी थी।
शिकायतकर्ता दिग्विजय सिंह की ओर से ईओडब्ल्यू में की गई शिकायत के आधार पर कार्रवाई की गई।

कार्रवाई के दौरान पांडेय के कार्यालय में हल्की झड़प और विरोध की स्थिति भी उत्पन्न हो गई, जिसे लेकर EOW डीएसपी उमा आर्य ने कहा कि “ऐसी स्थितियां अक्सर बन जाती हैं”।

राजपत्रित अधिकारी संघ का बड़ा आरोप

अब मामले में नया मोड़ तब आया, जब मध्यप्रदेश सहकारिता विभाग के राजपत्रित अधिकारी संघ ने मुख्यमंत्री सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर इस कार्रवाई को साजिश करार दिया है।
संघ का आरोप है कि पांडेय को जानबूझकर फंसाया गया और रंगे हाथ पकड़वाने की पटकथा तैयार की गई

संघ के अनुसार, घटनास्थल पर जबरन पांडेय के हाथ के पिछले हिस्से को केमिकल लगे नोटों से स्पर्श कराया गया, ताकि उन्हें रंगे हाथों रिश्वत लेते हुए साबित किया जा सके।

सेल्समैन की नियुक्ति: अधिकार क्षेत्र से बाहर?

संघ ने अपनी शिकायत में यह भी उल्लेख किया है कि सेल्समैन की नियुक्ति पांडेय के कार्य क्षेत्र का विषय ही नहीं था।
शिकायतकर्ता द्वारा दिया गया आवेदन अहस्ताक्षरित प्रस्ताव पर आधारित था, जिसे पांडेय ने केवल जिला कार्यालय को फॉरवर्ड करने के निर्देश दिए थे। ऐसे में रिश्वत मांगने की कोई ठोस वजह नहीं बनती।

जमानत मिलने से बढ़ा पक्ष का भरोसा

इस बीच, अदालत ने शिवेंद्र देव पांडेय को जमानत दे दी है, जिससे उनके पक्षकारों को कुछ राहत मिली है।
संघ ने ज्ञापन में पांडेय को एक ईमानदार, निष्कलंक और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी बताया है। उन्होंने मांग की है कि इस पूरे घटनाक्रम की उच्चस्तरीय, निष्पक्ष और न्यायिक जांच कराई जाए, ताकि सच्चाई सामने आ सके।

राजनीतिक हलचल और प्रशासनिक प्रतिक्रिया

इस मामले ने प्रशासनिक हलकों के साथ-साथ राजनीतिक गलियारों में भी सक्रियता बढ़ा दी है। अभी तक सहकारिता मंत्री या मुख्यमंत्री कार्यालय से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन ज्ञापन दिए जाने के बाद जांच के आदेश या स्पष्टीकरण की संभावना जताई जा रही है।

क्या यह ईमानदारी की सजा है या भ्रष्टाचार का चेहरा?

अब बड़ा सवाल यह है कि – क्या संयुक्त आयुक्त पांडेय वाकई भ्रष्टाचार में लिप्त थे, या फिर यह पूरे सिस्टम में किसी निजी या राजनीतिक रंजिश का नतीजा है?
जांच ही इसका जवाब दे सकती है, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी पर इस प्रकार की कार्रवाई और उस पर लगाए गए गंभीर आरोपों से विभाग की छवि पर भी असर पड़ रहा है।

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इस मामले ने मध्यप्रदेश के प्रशासनिक ढांचे में जवाबदेही और पारदर्शिता को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।
अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री और EOW पर टिकी हैं कि वे इस आरोप और प्रत्यारोप के बीच सत्य को उजागर करने के लिए कितनी गंभीरता और निष्पक्षता से कार्रवाई करते हैं।

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