उमरिया जिले के पाली क्षेत्र स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी मरीजों के लिए मुसीबत का कारण बन गई है। भीषण गर्मी के इस दौर में जब तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच रहा है, ऐसे में अस्पताल परिसर में पीने के पानी की कोई व्यवस्था न होना गंभीर चिंता का विषय है। मरीज और उनके परिजन बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं और अस्पताल आने के बजाय परेशान होकर अन्य विकल्पों की तलाश में भटकते नजर आ रहे हैं।
आरओ मशीन वर्षों से खराब, कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं
अस्पताल परिसर में नाममात्र के लिए एक आरओ मशीन जरूर लगी है, लेकिन वह भी लंबे समय से खराब पड़ी है। इस कारण मरीजों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा। कई मरीजों को दूर-दराज के इलाकों से अपने साथ पानी लाना पड़ता है, जबकि अधिकांश को मजबूरी में 20 रुपये की पानी की बोतल बाजार से खरीदनी पड़ती है। यह स्थिति न सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के लिए असहनीय है, बल्कि अस्पताल की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि इस समस्या को लेकर कई बार ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (बीएमओ) से शिकायत की गई, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। लोगों का आरोप है कि या तो अधिकारी इस गंभीर समस्या से अनजान हैं या फिर जानबूझकर इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। यह लापरवाही अब मरीजों की जान पर भारी पड़ने लगी है।
लाखों रुपये खर्च के बाद भी व्यवस्था ध्वस्त
अस्पताल में उपस्थित कुछ लोगों ने बताया कि शासन द्वारा पेयजल व्यवस्था सुधारने के लिए लाखों रुपये का बजट आवंटित किया गया था। उस बजट से आरओ प्लांट और पानी की टंकियां लगाई गई थीं, लेकिन रखरखाव के अभाव में आज सारी व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। कहीं पाइपलाइन टूटी हुई है तो कहीं टंकियां सूखी हैं।
सीएमएचओ का बयान – जल्द होगी कार्रवाई
जब इस संबंध में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. शिवबहोर चौधरी से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा,
“आपके माध्यम से हमें इस समस्या की जानकारी मिली है। हम मामले की जांच करेंगे और शीघ्र ही आवश्यक कदम उठाएंगे।”
हालांकि, स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि इस तरह के आश्वासन पहले भी दिए गए हैं, लेकिन जमीन पर कोई बदलाव नहीं हुआ।
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पाली क्षेत्र का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र क्षेत्र के हजारों लोगों के लिए एकमात्र इलाज का विकल्प है। ऐसे में यहां बुनियादी सुविधाओं—विशेष रूप से पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता—का अभाव सीधे तौर पर मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ है। यह प्रशासनिक लापरवाही की जीती-जागती मिसाल है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस बार कितनी गंभीरता से कदम उठाता है या यह मामला भी केवल फाइलों तक सीमित रह जाएगा।