जिले में जारी सरकारी आदेशों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। एक ओर जहां गरीब मछुआरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है, वहीं दूसरी ओर रेत माफिया गोपद नदी से दिन-रात रेत निकालकर धड़ल्ले से कारोबार कर रहे हैं, और प्रशासन मूकदर्शक बना बैठा है।
15 जून के आदेश: सिर्फ मछुआरों पर लागू?
सिंगरौली कलेक्टर ने 15 जून से जिले में मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इसका मकसद बताया गया – प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना और जलजीवों की रक्षा करना। आदेश के अनुसार, इस अवधि में मछली पकड़ना, जाल डालना, यहां तक कि मछली मारने की कोशिश भी कानूनन अपराध माना जाएगा।
लेकिन सवाल ये उठता है – क्या पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी सिर्फ मछुआरों की है? क्या जलस्रोतों की कोख को छलनी करना इस कानून के दायरे से बाहर है?
गोपद नदी में सहकार ग्लोबल का रेत कारोबार जारी
वहीं, गोपद नदी में स्थित भरसेड़ी खदान में सहकार ग्लोबल कंपनी का रेत उत्खनन जोरशोर से चल रहा है। ट्रैक्टर, हाइवा और जेसीबी मशीनें नदी की धारा को तोड़कर रेत निकाल रही हैं। नियमों के अनुसार, इस मौसम में खनन पर पूरी तरह से रोक होनी चाहिए, लेकिन जमीन पर हालात ठीक इसके उलट हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो रेत माफिया को प्रशासन का मौन समर्थन प्राप्त हो।


हर साल 15 जून के बाद जिले में रेत खदानों को सील कर दिया जाता था, मगर इस बार न ताले लगे, न ही रोक-टोक नजर आई। कोई अधिकारी खदानों का निरीक्षण करने नहीं पहुंचा, और कंपनी अपने नेटवर्क के सहारे रेत खींचती रही।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह सबकुछ एक सटीक रणनीति के तहत हो रहा है। जहां नियमों की चादर सिर्फ कमजोरों को ढकने के लिए है, वहीं रसूखदारों के लिए कानून की सीमाएं लचीली कर दी जाती हैं।
मछुआरे पर जुर्माना, रेत माफिया पर इनाम जैसी छूट
सरकार के आदेश के अनुसार, अब अगर कोई गरीब मछुआरा अपने परिवार का पेट भरने के लिए नदी में जाल डाले, तो उसे जुर्माना भरना पड़ेगा या जेल जाना पड़ेगा। लेकिन गोपद नदी की छाती चीर कर रेत निकालने वालों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जा रही है।
यह दोहरापन समाज में आक्रोश पैदा कर रहा है। ग्रामीणों में चर्चा है कि नियम-कानून सिर्फ कागजों तक सीमित हैं। जमीन पर तो जिनके पास ताकत और संबंध हैं, वही विजेता बनते हैं।
क्या प्रशासन करेगा कार्रवाई या यूं ही चलता रहेगा रेत का गोरखधंधा?
अब बड़ा सवाल यह है कि प्रशासन इस पर कार्रवाई करेगा या फिर एक बार फिर इस मुद्दे को दबा दिया जाएगा। क्या सिर्फ छोटे मछुआरों को नियमों का पाठ पढ़ाया जाएगा, या रेत माफियाओं को भी कभी प्रशासनिक शिकंजे में लाया जाएगा?
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गोपद नदी की लूट की यह कहानी अब सिंगरौली की जनता की जुबान पर है। लोग पूछ रहे हैं – “कब रुकेगा यह दोहरा न्याय?”