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सिंगरौली की सड़कों पर मौत की रफ्तार! हादसों के बाद जागा प्रशासन, अब नो एंट्री का सहारा

सिंगरौली जिले में बीते वर्षों में सड़क हादसों का आंकड़ा हजारों जिंदगियों को निगल चुका है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन मौतों के बाद भी प्रशासन लापरवाह बना रहा।
अब जबकि हालात हाथ से निकलने लगे, जिला प्रशासन की नींद टूटी और ‘नो एंट्री’ जैसे उपायों की घोषणा की गई। सवाल यह है कि यदि ये कदम पहले उठाए गए होते, तो क्या आज सैकड़ों परिवार अपने लोगों को खोने के ग़म में डूबे होते?

औद्योगिक शहर, लेकिन जनसुरक्षा हाशिए पर

सिंगरौली को ‘ऊर्जाधानी’ और औद्योगिक राजधानी के नाम से जाना जाता है। यहां हर रोज हजारों ट्रक और भारी वाहन कोल, फ्लाई ऐश, सीमेंट, बॉक्साइट सहित औद्योगिक सामान लेकर दौड़ते हैं। इन भारी वाहनों ने न केवल शहर की सड़कों को रौंद डाला है, बल्कि स्कूल से लौटते बच्चों, ऑफिस जाने वाले कर्मचारियों और आम राहगीरों की जान तक ले ली है।

इतनी मौतों के बावजूद, सड़क सुरक्षा को लेकर प्रशासन की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।

नो एंट्री नीति: देर से सही, लेकिन क्या दुरुस्त?

अब प्रशासन दावा कर रहा है कि नो एंट्री नीति सख्ती से लागू की जाएगी — खासकर शहर के भीतरी इलाकों में भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक रहेगी।
यदि वास्तव में यह योजना 100% प्रभावी ढंग से लागू हो, तो विशेषज्ञों का मानना है कि दुर्घटनाओं में 70 से 90% तक की गिरावट आ सकती है

लेकिन यहीं सबसे बड़ा सवाल है:
क्या पुलिस और परिवहन विभाग इसे पूरी ईमानदारी से लागू करेंगे या फिर “सेटिंग-सिस्टम” के आगे यह भी ढीली पड़ जाएगी?

हालिया बंधौरा ट्रक हादसा और उसके बाद हुई आगजनी प्रशासन के लिए साफ संदेश था कि जनता अब सहन नहीं करेगी। आए दिन हो रहे चक्का जाम, प्रदर्शन, रोष मार्च केवल प्रशासन की विफलता की परिणति हैं।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि

“नो एंट्री सिर्फ नियम की बात नहीं है, यह अब हमारे बच्चों की सुरक्षा का सवाल है।”

किसकी जिम्मेदारी? प्रशासन या राजनीति के इशारे?

एक और अहम बात यह है कि जन सुरक्षा जैसे मसलों पर प्रशासन को स्वतंत्र निर्णय लेने चाहिए, न कि सांसद या विधायकों की ‘अनुमति’ का इंतजार करना चाहिए।


अभी तक सिंगरौली में प्रशासन की छवि एक राजनीतिक ‘टूल’ की बन चुकी है, जो आदेश के बिना न तो आगे बढ़ता है और न ही कार्रवाई करता है।

अब जनता देख रही है!

नो एंट्री की घोषणा से पहले, सिंगरौली कलेक्टर ऑफिस पर जनप्रतिनिधियों से लेकर सामाजिक संगठनों तक ने बार-बार ज्ञापन दिए। अब जब नियम बना है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पुलिस-प्रशासन वास्तव में इसे सख्ती से लागू करेगा?
या फिर वही पुराना खेल — पैसे लेकर गाड़ियाँ अंदर, चालान के नाम पर खानापूर्ति और सड़क हादसे जारी?

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सड़क सुरक्षा सिर्फ प्रशासनिक आदेश नहीं — यह हर उस परिवार की उम्मीद है, जिसने अपनों को खोया है
अब समय है कि सिंगरौली प्रशासन कार्रवाई नहीं, परिणाम दिखाए।

वरना अगली दुर्घटना से पहले फिर कोई नो एंट्री लागू होगी — लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी।

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