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सिंगरौली में कुएं में गिरकर 48 वर्षीय शख्स की मौत, परिजन बोले – वक्त पर मिला होता इलाज तो बच सकती थी जान

सिंगरौली जिले के खुटार गांव से एक दर्दनाक और रहस्यमयी हादसे की खबर सामने आई है। गांव के 48 वर्षीय निवासी रामसुरत साकेत की अपने ही घर के पास स्थित कुएं में गिरने से मौत हो गई। घटना 16 जून की रात लगभग 10:30 से 11 बजे के बीच की बताई जा रही है। मृतक के परिजनों का आरोप है कि अगर स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य तंत्र समय पर सक्रिय होता, तो शायद रामसुरत की जान बचाई जा सकती थी।

घर के बाहर सूखे कुएं में गिरा व्यक्ति, मौके पर ही टूट गए जबड़े और हड्डियां

रामसुरत साकेत, पिता जोखई प्रसाद, रोज की तरह रात को घर से बाहर निकले थे, लेकिन कुछ ही पलों में उनके गिरने की आवाज आई और सन्नाटा छा गया। जब गांव वालों ने टॉर्च की रोशनी में देखा, तो पता चला कि वह करीब 30 से 35 फीट गहरे सूखे कुएं में गिर चुके थे।

कुएं में पानी नहीं था, और गिरते ही उनके शरीर के जबड़े और कई हड्डियां टूट गईं। यह दृश्य देख परिवार के होश उड़ गए, लेकिन उन्हें अब भी एक आस थी कि शायद शरीर में जान बाकी हो। चारपाई और रस्सियों की मदद से गांव वालों ने किसी तरह उन्हें कुएं से बाहर निकाला।

एंबुलेंस नहीं मिली, खुद के वाहन से अस्पताल ले गए परिजन

यहां सवाल प्रशासन पर तब खड़े होते हैं जब पता चलता है कि इतनी गंभीर घटना के बावजूद गांव में एंबुलेंस नहीं पहुंची। समय की नजाकत को देखते हुए परिजन रामसुरत को खुद के वाहन से हिरावती अस्पताल ले गए, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

परिवार को यकीन नहीं हुआ, उन्होंने फिर भी उन्हें जिला अस्पताल ले जाया, लेकिन वहां भी डॉक्टरों ने यही कहा – “शरीर में कोई हरकत नहीं, मृत अवस्था में लाया गया।”

सवाल उठाती है यह मौत – क्या मौत हादसा थी या लापरवाही?

रामसुरत की मौत को लेकर गांव में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिर्फ हादसा नहीं, बल्कि व्यवस्थाओं की विफलता भी है।

  • सवाल यह है कि इतने पुराने खुले कुएं को ढंका क्यों नहीं गया?
  • रात्रिकालीन आपात स्थिति के लिए गांव में कोई अलर्ट या एंबुलेंस सेवा क्यों नहीं थी?
  • प्राथमिक इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र क्यों बेबस नजर आया?

चार बच्चों का बेसहारा परिवार, महिलाओं का रो-रोकर बुरा हाल

रामसुरत साकेत अपने पीछे चार बच्चे छोड़ गए हैं – तीन बेटियां और एक बेटा। अब उनके सिर से पिता का साया हमेशा के लिए उठ गया है। घर में मातम पसरा हुआ है, और हर कोने से रोने-बिलखने की आवाजें आ रही हैं।

परिजनों ने यह भी मांग की है कि प्रशासन मृतक परिवार को आर्थिक सहायता दे और पूरे मामले की जांच की जाए ताकि आगे ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।

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रामसुरत साकेत की मौत ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारे गांवों में आपातकालीन व्यवस्था सिर्फ कागज़ों में है?
अगर समय पर सहायता मिली होती, तो शायद एक जीवन बच सकता था। यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि व्यवस्था के खोखलेपन की चीत्कार है, जो देर रात कुएं की गहराई से उठी थी – लेकिन क्या कोई सुन रहा है?

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