सीधी
मध्यप्रदेश के सीधी जिले का संजय गांधी महाविद्यालय परिसर स्थित एकमात्र ऑडिटोरियम इन दिनों बदहाली का शिकार है। यह वही ऑडिटोरियम है जहां से लेकर भाजपा और कांग्रेस जैसे तमाम राजनीतिक दलों के कार्यक्रम, शासकीय आयोजनों से लेकर छात्र सम्मेलनों तक हर आयोजन होता है, लेकिन हालात ऐसे हैं कि न तो पीने के पानी की समुचित व्यवस्था है और न ही बैठने की सुविधा। अव्यवस्थाओं के बीच यह ऑडिटोरियम गवाही देता है कि सरकारी फंड्स का इस्तेमाल ज़मीनी विकास के बजाय कहीं और हो रहा है।
हर कार्यक्रम यहीं, पर हालत शर्मनाक
सीधी शहर में यह इकलौता ऑडिटोरियम है, जो संजय गांधी महाविद्यालय के अधीन आता है। हर राजनीतिक दल, जिला प्रशासन, कॉलेज एवं स्कूल स्तर के तमाम कार्यक्रमों का यही मंच बनता है, लेकिन उसकी दयनीय स्थिति देखकर सवाल उठते हैं कि आखिर अब तक इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया?
दरअसल, ऑडिटोरियम की कुर्सियाँ टूट चुकी हैं, पंखे और लाइटें खराब हैं, और गर्मी में भीतर बैठना तक मुश्किल हो जाता है। बारिश के समय छत से पानी टपकना आम बात हो गई है। सवाल यह भी है कि जब हर बार कार्यक्रम यहीं होते हैं तो फिर प्रशासनिक अधिकारी, जनप्रतिनिधि और खुद कॉलेज प्रबंधन क्यों आंखें मूंदे हुए हैं?
शिकायतें तो हुईं, पर कार्रवाई नहीं
इस पूरे मामले में छात्र नेताओं ने कई बार शिकायतें की हैं। कॉलेज के प्राचार्य और जिला प्रशासन से बात करने के बाद भी नतीजा शून्य रहा। छात्र नेता शिवांशु द्विवेदी ने बताया कि वे इस विषय पर कई बार अधिकारियों से मिले, वीडियो सबूत सौंपे, मगर अब तक न तो कोई निरीक्षण हुआ और न ही सुधार के संकेत मिले।
छात्रों का आरोप है कि हर वर्ष फंड आता है, लेकिन वह कहाँ जाता है, इसकी कोई जानकारी नहीं दी जाती। यह सवाल भी अहम है कि जो ऑडिटोरियम जिले की सियासी, शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है, उसकी उपेक्षा आखिर क्यों की जा रही है?
क्या केवल जेबें भरने के लिए आते हैं फंड्स?
मौके पर की गई पड़ताल से यह साफ हो गया कि ऑडिटोरियम में लंबे समय से कोई मरम्मत कार्य नहीं हुआ है। दीवारों पर प्लास्टर झड़ रहा है, दरवाजे जर्जर हो चुके हैं और टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधाएं भी बेकार पड़ी हैं।
स्थानीय छात्र कहते हैं कि जब भी कोई कार्यक्रम होता है, तो व्यवस्थाओं को जैसे-तैसे संभाला जाता है, लेकिन स्थायी समाधान की किसी को परवाह नहीं। यह सीधी शहर के शैक्षणिक और राजनीतिक गरिमा के लिए शर्मनाक स्थिति है।
छात्र नेता शिवांशु ने संभाली बागडोर
जब कॉलेज प्रशासन, स्थानीय अधिकारी और जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं, तब छात्र नेता शिवांशु द्विवेदी ने मोर्चा संभाला है। उन्होंने न सिर्फ इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया, बल्कि वीडियो साक्ष्य के साथ सोशल मीडिया और स्थानीय प्रशासन तक इसे पहुंचाया है।


शिवांशु का कहना है, “जब किसी भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने छात्रों की आवाज नहीं सुनी, तब हमने ठाना कि अब ऑडिटोरियम की बदहाली को उजागर करना ज़रूरी है। हम चाहते हैं कि सरकार इस पर तुरंत कार्रवाई करे और जवाबदेही तय करे।“
सरकार से कार्रवाई की मांग
अब छात्रों और जागरूक नागरिकों की मांग है कि इस ऑडिटोरियम की दशा सुधारने के लिए सरकारी स्तर पर तत्काल हस्तक्षेप हो। इसके साथ ही वर्षों से लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई जिम्मेदार इस तरह की उपेक्षा न कर सके।
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सवाल सिर्फ एक ऑडिटोरियम का नहीं है, सवाल पूरे सीधी शहर की सांस्कृतिक और शैक्षणिक पहचान का है। जब एकमात्र ऐसा स्थल जो सबका साझा मंच हो, उसकी हालत बदतर हो जाए और फिर भी कोई कार्यवाही न हो, तो यह केवल उदासीनता नहीं, बल्कि लापरवाही की पराकाष्ठा है।
अब देखना यह है कि प्रशासन कब तक चुप बैठा रहेगा और क्या छात्र नेताओं की आवाज इस व्यवस्था को झकझोरने में कामयाब होगी?