सीधी। मंगलवार को सीधी जिला अस्पताल और मातृत्व अस्पताल में बिजली आपूर्ति ठप हो जाने से स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं। जिला अस्पताल में करीब दो घंटे लगातार बिजली नहीं रही, जबकि मातृत्व अस्पताल में दोपहर 2 बजे से बिजली गुल रही। इस दौरान जनरेटर जैसी वैकल्पिक व्यवस्था का उपयोग नहीं किया गया, जिससे मरीजों और उनके परिजनों में नाराज़गी है।
बिजली कटने का असर सबसे ज्यादा आपातकालीन सेवाओं और प्रसूति वार्ड पर पड़ा। गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए स्थिति बेहद संवेदनशील रही। स्टाफ को मोबाइल टॉर्च के सहारे काम करना पड़ा, जो किसी भी मानक चिकित्सा व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
स्थानीय नागरिकों और मरीजों के परिजनों का कहना है कि यह घटना प्रशासन की गंभीर लापरवाही को उजागर करती है। उनका आरोप है कि सरकार जनता के हित में सुविधाएं मुहैया कराने के लिए संसाधन देती है, लेकिन स्थानीय स्तर पर अधिकारी उन पर अमल नहीं करते।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब अस्पताल में जनरेटर जैसी सुविधा होनी चाहिए, तो वह समय पर क्यों नहीं चालू हुआ? क्या जनरेटर मौजूद नहीं था, खराब था या ईंधन की कमी से बेकार पड़ा रहा? यदि जनरेटर चालू था, तो क्या वह पूरे अस्पताल को बिजली आपूर्ति देने में सक्षम नहीं था?

इस घटना ने बिजली विभाग की जिम्मेदारी पर भी सवाल खड़े किए हैं। आखिर जिला मुख्यालय के सबसे बड़े अस्पताल में दिन-दोपहर बिजली कैसे गुल हो सकती है और वह भी घंटों तक? क्या यह तकनीकी खराबी थी या बिना योजना की कटौती? और अगर कटौती जरूरी थी, तो क्या अस्पताल प्रशासन को पहले से सूचना दी गई थी?
मरीजों के परिजनों का कहना है कि अगर इस दौरान किसी मरीज की मौत होती या किसी प्रसूता को नुकसान होता, तो इसकी संपूर्ण जिम्मेदारी बिजली विभाग और जिला अस्पताल के अधिकारियों की होनी चाहिए। उनका यह भी कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं में इस तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
यह भी पढ़िए – सीधी जिला अस्पताल में लापरवाही का बड़ा खुलासा – 21 वर्षीय युवती को लगाई गई एक्सपायरी दवाई, प्रशासन पर उठे सवाल
घटना के बाद आम जनता का भरोसा अस्पताल की व्यवस्था पर कमजोर हुआ है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है या यह घटना भी केवल कागज़ी कार्रवाई और आश्वासनों तक सीमित रह जाएगी।