मध्य प्रदेश के सीधी जिले की चुरहट कृषि समिति इन दिनों किसानों के लिए परेशानी का कारण बन गई है। जिन किसानों की मेहनत से खेतों में जीवन उपजता है, वही किसान इन दिनों खाद के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। चुरहट समिति में खाद की कमी इस कदर बढ़ गई है कि रोज़ सैकड़ों किसान सुबह से लाइन में लगते हैं, लेकिन उन्हें निराश होकर लौटना पड़ता है।
किसान न तो हंगामा कर रहे हैं, न ही कोई आंदोलन। वे केवल अपने अधिकार के लिए चुपचाप कतार में खड़े रहते हैं – उम्मीद के साथ कि आज शायद खाद मिल जाए। मगर अधिकतर बार उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ता है। यह स्थिति अब लगातार दिनों से बनी हुई है।
चौंकाने वाली बात यह है कि खाद की जो थोड़ी-बहुत आपूर्ति आती है, वह भी पारदर्शी तरीके से वितरित नहीं हो रही है। किसानों का आरोप है कि समिति में पदस्थ अधिकारी आनंद सिंह खाद का वितरण गोपनीय ढंग से कुछ चुनिंदा लोगों के बीच कर देते हैं। बाकी किसानों को यह भी नहीं बताया जाता कि खाद आई थी या नहीं।
यह भी गौर करने वाली बात है कि न ही समिति में कोई सूचना बोर्ड लगाया गया है, न ही किसानों को किसी प्रकार की अग्रिम जानकारी दी जाती है। वे सिर्फ़ उम्मीद और भरोसे के सहारे हर रोज़ वहां पहुंचते हैं – कोई साइकिल से, कोई पैदल, तो कोई किराया लगाकर। पर नतीजा सिर्फ़ निराशा।

किसानों में यह सवाल उठने लगा है कि जब कोई हंगामा नहीं हो रहा, कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई, तब भी अधिकारियों द्वारा उनके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है? क्या यह जरूरी है कि पहले विरोध हो, तब जाकर कोई सुनवाई हो? क्या चुपचाप अपने अधिकार की उम्मीद करना आज के समय में कमजोरी बन चुका है?
इस पूरे मसले पर जब किसानों ने समिति में जानकारी लेनी चाही, तो किसी भी अधिकारी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि प्रतिदिन कितना स्टॉक आ रहा है, कैसे वितरण हो रहा है, और बाकी किसानों तक खाद क्यों नहीं पहुंच रही। अधिकारी की चुप्पी और प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी ने सवालों को और गहरा कर दिया है।
ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि कृषि विभाग और जिला प्रशासन इस मामले का संज्ञान लें। किसानों की परेशानी को केवल तभी गंभीर नहीं माना जाना चाहिए जब वे सड़क पर उतरें। एक सभ्य और शांत किसान भी उतना ही अधिकार रखता है, जितना कि कोई प्रदर्शनकारी।
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चुरहट समिति में खाद संकट प्रशासन की लापरवाही और व्यवस्था की अनदेखी का साफ संकेत है। किसान बार-बार आ रहे हैं, खर्च कर रहे हैं, समय गंवा रहे हैं, लेकिन उन्हें उनकी जरूरत की खाद नहीं मिल रही। सवाल यह है कि इस हालात का ज़िम्मेदार कौन है? और सबसे अहम – आखिर एक शांत किसान की आवाज़ को कब सुना जाएगा?