सीधी: शहर में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसके नियंत्रण के लिए किए जा रहे उपायों की पोल खुल रही है। आरटीओ और प्रदूषण नियंत्रण विभाग की लापरवाही के चलते चलित पीयूसी केंद्रों में जमकर फर्जीवाड़ा हो रहा है। जांच के बिना ही वाहन चालकों को प्रमाण पत्र थमा दिए जा रहे हैं, जिससे शहर की हवा जहरीली होती जा रही है।
सीधी:- फर्जीवाड़े का तरीका
पीयूसी (पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल) सेंटर में वाहन चालकों को साइलेंसर के धुएं की जांच के नाम पर फोटो खींची जाती है और फिर 100 रुपए लेकर तुरंत 6 माह का सर्टिफिकेट दिया जाता है। यह सब तब हो रहा है जब अधिकतर दोपहिया और चारपहिया वाहन 15 साल पुराने हो चुके हैं और उनके लिए रजिस्ट्रेशन रिन्यू कराने के लिए पॉल्यूशन सर्टिफिकेट अनिवार्य है।

गंभीर चिंता
विशेषज्ञों का कहना है कि पीयूसी सेंटर वाले सभी वाहनों का प्रदूषण स्तर ठीक बता रहे हैं, जबकि वास्तविकता में कई वाहन खटारा हो चुके हैं। जांच में पारदर्शिता लाने के लिए वीडियोग्राफी का सुझाव दिया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि वाहनों की प्रदूषण उत्सर्जन क्षमता क्या है।
ऑनलाइन फीस जमा करने में दिक्कतें
पुराने वाहनों के रजिस्ट्रेशन रिन्यू कराने के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरना आवश्यक है, लेकिन वेबसाइट पर फीस जमा नहीं हो रही है। इस वजह से आवेदकों को दलालों के पास जाना पड़ रहा है, जो निर्धारित फीस के साथ कमीशन भी वसूल रहे हैं।
प्रदूषण जांच के तरीके
- धुएं की जांच: पीयूसी केंद्र में वाहन के साइलेंसर से निकलने वाले धुएं की जांच की जाती है, जिसमें कॉर्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकॉर्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को मापा जाता है।
- मानक के अनुसार माप: यदि प्रदूषण का मानक तय सीमा के भीतर है, तो सर्टिफिकेट दिया जाता है; नहीं तो वाहन को ठीक कराने के लिए कहा जाता है।
जांच का महत्व
- पर्यावरण: वाहनों से निकलने वाली हानिकारक गैसें सीधे वातावरण में मिलती हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है।
- स्वास्थ्य: बढ़ता प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता है, जिससे दमा और श्वसन रोग जैसी बीमारियों में वृद्धि हो रही है।
- नियमों का पालन: पीयूसी जांच न कराने पर यातायात विभाग जुर्माना या वाहन जब्ती की कार्रवाई कर सकता है।
निष्कर्ष
सीधी में प्रदूषण नियंत्रण के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। फर्जीवाड़े की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए पीयूसी जांच प्रक्रिया में सुधार किया जाना चाहिए, जिससे वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सके और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
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