Homeप्रदेशसीधी में बस्ती उजड़ी, प्रशासन जागा सामने आया सीधी का दर्दनाक सच

सीधी में बस्ती उजड़ी, प्रशासन जागा सामने आया सीधी का दर्दनाक सच

मध्य प्रदेश के सीधी जिले के ग्राम डैनिहा में हाल ही में घटित एक घटना ने शासन, प्रशासन और समाज की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। न्यायालय के आदेश के बाद यहां रहने वाले सैकड़ों आदिवासी परिवारों के आशियानों पर बुलडोजर चला दिया गया। ये परिवार वर्षों से गैर-मालिकी जमीन पर रह रहे थे, लेकिन अचानक आई इस कार्रवाई ने उन्हें बेघर कर दिया। आश्चर्य की बात यह रही कि न तो उनके रहने की तत्काल कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई और न ही भोजन, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई गईं।

कानूनी कार्रवाई या मानवीय भूल?

प्रशासन के अनुसार, यह कार्रवाई अदालत के स्पष्ट निर्देशों के तहत की गई थी। गांव की जिस भूमि पर ये आदिवासी परिवार बसे थे, वह जमीन एक निजी व्यक्ति की थी जिसने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। न्यायालय के आदेश के बाद प्रशासन को कब्जा हटाने के लिए मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ी। हालांकि, यह भी सच है कि इन परिवारों को हटाने से पहले उनके पुनर्वास की तैयारी नहीं की गई थी, जो कि इस पूरी घटना का सबसे संवेदनशील और विवादित पक्ष बन गया।

इंसानियत पर पड़ा असर

बुलडोजर की गर्जना के बाद वहां जो दृश्य उभरा, वह किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आत्मा को झकझोर सकता है। जिन झोपड़ियों में एक दिन पहले तक ज़िंदगी बसी थी, वहां अब सिर्फ टूटी छतें और बिखरा हुआ सामान पड़ा था। कई परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो गए। बच्चों की पढ़ाई, परिवार की रोज़मर्रा की जरूरतें और आजीविका – सब कुछ एक झटके में खत्म हो गया।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और सवाल

घटना के बाद विपक्षी दलों ने प्रशासन पर निशाना साधा। कांग्रेस समेत कई दलों ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने न्यायालय के आदेश को लागू करने में मानवीय पक्ष की पूरी तरह अनदेखी की। बिना पुनर्वास या वैकल्पिक व्यवस्था के आदिवासियों को हटाना संविधान के अनुच्छेद 21 – “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” – का सीधा उल्लंघन बताया गया। नेताओं ने यह भी सवाल उठाया कि क्या गरीबों और आदिवासियों के लिए देश में कोई जगह नहीं बची?

प्रशासन की पहल: अब दे रहे राहत

मीडिया में मामले के उछलने और राजनीतिक दबाव के बाद प्रशासन हरकत में आया। अब सीधी शहर के पास खुर्द इलाके में बेघर हुए परिवारों को जमीन के पट्टे दिए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें पक्के घर भी मुहैया कराए जाएंगे। अधिकारियों का कहना है कि सभी प्रभावित परिवारों की सूची तैयार की जा रही है और पुनर्वास की प्रक्रिया जल्द पूरी की जाएगी।

सोचने पर मजबूर करती घटना

यह घटना सिर्फ एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं थी, बल्कि यह एक सामाजिक और नैतिक चुनौती भी है। सवाल यह नहीं है कि कोर्ट का आदेश क्यों लागू किया गया, सवाल यह है कि क्या इसे लागू करने से पहले प्रशासन ने आदिवासियों की स्थिति को गंभीरता से समझा? क्या कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए संवेदनशीलता नहीं दिखानी चाहिए थी?

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ग्राम डैनिहा की यह घटना बताती है कि कानूनी प्रक्रिया और मानवीय संवेदनशीलता के बीच संतुलन कितना ज़रूरी है। अदालत के आदेशों का पालन अनिवार्य है, लेकिन इससे पहले यह सुनिश्चित करना भी उतना ही जरूरी है कि जिन लोगों को प्रभावित किया जा रहा है, उनके लिए सम्मानजनक जीवन की व्यवस्था हो। उम्मीद है कि इस घटना से सबक लेकर भविष्य में ऐसी कार्रवाइयों में मानवीय पक्ष को प्राथमिकता दी जाएगी।

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