सीधी।
मध्य प्रदेश के सीधी जिले में एनएच-39 पर बीती रात एक हृदय विदारक हादसा हुआ। रात करीब 11:30 बजे एक अनजान वाहन ने सड़क पर बैठे गोवंशों को बेरहमी से रौंद दिया। इस दर्दनाक दुर्घटना में मौके पर ही चार गोवंशों की मौत हो गई, जबकि एक गंभीर रूप से घायल है। घटना के बाद स्थानीय लोग स्तब्ध हैं और प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल उठने लगे हैं।
यह कोई पहली घटना नहीं है जब सड़कों पर बेसहारा छोड़े गए मवेशी मौत का शिकार बने हों। सरकार हर बार बजट में गौशालाओं के निर्माण और गोवंशों की देखभाल के लिए करोड़ों रुपये आवंटित करती है। लेकिन हकीकत यह है कि न तो गोवंश सुरक्षित हैं और न ही सड़कें। सवाल उठता है कि आखिर करोड़ों के फंड्स कहां बहा दिए जाते हैं?
कागज़ पर बनती गौशालाएँ, ज़मीन पर गायब सुविधाएँ
मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई बार गौशाला निर्माण और गोवंश सेवा का दावा किया है। लेकिन सीधी की यह घटना बताती है कि ज़मीनी स्तर पर यह सब सिर्फ कागज़ों में ही सिमटा हुआ है। यदि वाकई में पर्याप्त गौशालाएँ बनी होतीं और उनमें व्यवस्थाएँ दुरुस्त होतीं तो शायद इन निर्दोष जानवरों को यूं सड़क पर अपनी जान न गंवानी पड़ती।
शिवसेना के प्रदेश उपाध्यक्ष विवेक पांडे ने मौके पर पहुँचकर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “सरकार हर साल गौशाला और गोसेवा के नाम पर बजट पेश करती है, पैसे भी रिलीज होते हैं, लेकिन नतीजा क्या है? गायें अब भी सड़कों पर आवारा घूम रही हैं और हादसों में मर रही हैं। यह घटना अधिकारियों की नाकामी और भ्रष्टाचार का सीधा सबूत है।”
प्रशासनिक मौन और जनता का आक्रोश
घटना के बाद स्थानीय ग्रामीणों में आक्रोश है। उनका कहना है कि आए दिन सड़कों पर गाय-बैल बैठे रहते हैं, लेकिन न तो प्रशासन कोई ठोस कदम उठाता है और न ही पशुपालन विभाग सक्रिय नजर आता है। लोगों का आरोप है कि गोवंशों की सुरक्षा और प्रबंधन के नाम पर सिर्फ कागज़ी योजनाएँ चलाई जाती हैं।
हादसा या सिस्टम की विफलता?
एनएच-39 जैसी व्यस्त सड़क पर इस तरह का हादसा यह बताने के लिए काफी है कि हमारे सिस्टम में कितनी बड़ी खामियाँ हैं। न तो यातायात विभाग सड़क सुरक्षा पर ध्यान दे रहा है और न ही पशुपालन विभाग गोवंशों को सुरक्षित करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठा रहा है। हर बार हादसे के बाद कुछ बयान आते हैं और फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।

यहां केवल सरकार और प्रशासन ही दोषी नहीं हैं। समाज का एक बड़ा वर्ग भी जिम्मेदार है। कई लोग गायों से दूध निकालने के बाद उन्हें सड़क पर आवारा छोड़ देते हैं। न तो उनकी भोजन-पानी की व्यवस्था करते हैं और न ही रहने की। ऐसे लोग हादसों का रास्ता खुद बनाते हैं और जब दुर्घटना होती है तो पूरा दोष सरकार पर डाल देते हैं। यह दोहरा चरित्र सवालों के घेरे में है।
सीधी का यह हादसा केवल चार गोवंशों की मौत नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है। यह हादसा सरकार की गौशाला योजनाओं, प्रशासन की जिम्मेदारी और समाज की संवेदनहीनता—तीनों पर करारा तमाचा है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार और अधिकारी केवल बजट पेश करने और कागज़ी घोषणाएँ करने तक ही सीमित रहेंगे, या फिर जमीनी हकीकत बदलने के लिए कोई ठोस कदम भी उठाएँगे?
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यदि हालात ऐसे ही बने रहे तो आने वाले दिनों में न तो सड़कें सुरक्षित रहेंगी और न ही हमारे गोवंश।