सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद हुई हिंसा के एक गंभीर मामले में चार आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है। अदालत ने इस घटना को “लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला” करार दिया है और आरोपियों को 48 घंटे के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है। यह फैसला केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया, जिसमें कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा आरोपियों को दी गई जमानत को चुनौती दी गई थी।
क्या है पूरा मामला?
यह घटना 2 मई 2021 की है, जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित किए गए थे। इसी दिन राज्य के गुमसिमा गांव में चार लोगों ने कथित रूप से एक भाजपा समर्थक के घर पर हमला किया। उन्होंने घर में तोड़फोड़ की और उसकी पत्नी के साथ यौन उत्पीड़न का प्रयास किया। पीड़िता ने खुद को केरोसीन डालकर जलाने की धमकी दी, जिससे आरोपी वहां से भाग निकले। यह हमला न केवल व्यक्तिगत अपराध था, बल्कि इसका उद्देश्य राजनीतिक विरोधियों को डराना और उनके खिलाफ बदले की भावना को उजागर करना था।
पुलिस की निष्क्रियता और FIR दर्ज करने से इनकार
पीड़ित परिवार जब स्थानीय थाने पहुंचा तो पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया और उन्हें गांव छोड़ने की सलाह दी। इस लापरवाही के खिलाफ जब मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने CBI को जांच का आदेश दिया और इसके बाद FIR दर्ज हुई। 19 अगस्त 2021 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि चुनाव के बाद हुई हिंसा, विशेषकर महिलाओं के खिलाफ अपराध, जैसे बलात्कार और बलात्कार के प्रयास की जांच CBI द्वारा की जाए।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
गुरुवार को सुनाए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ में शामिल न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता ने कहा कि इस मामले के आरोप इतने गंभीर हैं कि वे न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोरते हैं। कोर्ट ने कहा कि यह केवल एक आपराधिक मामला नहीं है, बल्कि यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपियों द्वारा ट्रायल की प्रक्रिया को प्रभावित करने की संभावना है, और इसलिए उनकी जमानत रद्द की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में राजनीतिक विचारधारा की असहमति का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन हिंसा और यौन अपराधों के माध्यम से विरोधियों को डराना बेहद खतरनाक है।
ट्रायल में देरी और कोर्ट के निर्देश
CBI की ओर से यह भी बताया गया कि मामले की चार्जशीट 2022 में दाखिल की जा चुकी है, लेकिन ट्रायल में अब तक कोई खास प्रगति नहीं हुई है। अभियोजन ने दावा किया कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं, जिससे मामले में देरी हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह छह महीने के भीतर इस मामले की सुनवाई पूरी करे। इसके अलावा, राज्य के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया गया है कि वे पीड़िता और अन्य प्रमुख गवाहों को सुरक्षा उपलब्ध कराएं, ताकि वे बिना किसी डर के गवाही दे सकें।
लोकतंत्र के लिए चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ एक कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि एक सख्त संदेश है – कि लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा, खासकर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न जैसे अपराध, किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किए जा सकते। अदालत ने कहा कि यदि उसके आदेशों का कोई उल्लंघन होता है, तो अपीलकर्ता CBI या शिकायतकर्ता द्वारा रिपोर्ट की जा सकती है, ताकि समय रहते उचित कार्रवाई की जा सके।
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इस घटना ने यह स्पष्ट किया है कि भारत के लोकतंत्र में केवल चुनाव कराना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि चुनाव के बाद राजनीतिक असहमति को हिंसा में बदलने की प्रवृत्ति को भी कठोरता से रोका जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देश में लोकतांत्रिक मूल्यों, महिलाओं की गरिमा और न्याय की पारदर्शिता की रक्षा की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।