भोपाल।
मध्यप्रदेश में सरकारी भर्तियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 13% पद छह साल से होल्ड पर रखे जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने सवाल उठाया – “एमपी सरकार सो रही है क्या? छह साल में इन पदों पर क्या किया गया?”
ओबीसी महासभा के वकील वरुण ठाकुर ने बताया कि यह मामला मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) के चयनित अभ्यर्थियों से जुड़ा है, जिन्हें अभी तक नियुक्ति नहीं दी गई है। वर्ष 2022 में सरकार ने इस संबंध में एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसे कोर्ट में चुनौती दी गई है। सरकार का दावा है कि वह ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है और ऑर्डिनेंस पर लगी रोक हटाई जानी चाहिए।
कोर्ट की नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि एमपी सरकार के जनप्रतिनिधि मंच से 27% आरक्षण देने की प्रतिबद्धता जताते हैं, लेकिन उनके वकील अदालत में समय पर उपस्थित नहीं होते। कई बार वे तब पहुंचते हैं जब आदेश सुनाया जा चुका होता है। इसके बाद वे यह तर्क देते हैं कि स्टे के कारण प्रशासनिक परेशानियां आ रही हैं।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे टॉप ऑफ द बोर्ड में लिस्टेड करते हुए 23 सितंबर को पहले नंबर पर सुनवाई तय की है। उस दिन 13% होल्ड वाले सभी मामलों पर अंतिम सुनवाई होगी।
विवाद की पृष्ठभूमि
4 मई 2022 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी कर ओबीसी आरक्षण की सीमा 14% तय की थी। इससे पहले सरकार ने 14% से बढ़ाकर 27% आरक्षण देने का कानून बनाया था, जिसे चुनौती दी गई थी। इसके चलते 13% पदों पर रोक लग गई। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और तब से यह विवाद जारी है।

5 अगस्त की सुनवाई में ओबीसी महासभा की ओर से कहा गया था कि भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है लेकिन नियुक्तियां लंबित हैं। महासभा ने छत्तीसगढ़ की तरह राहत देने की मांग की थी, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 58% आरक्षण को मान्यता दी है।
अलग-अलग पक्षों की दलीलें
- ओबीसी पक्ष: एक्ट लागू किया जाए, 27% आरक्षण बहाल किया जाए और 13% होल्ड पदों पर नियुक्ति दी जाए।
- अनारक्षित पक्ष: 50% से अधिक आरक्षण संविधान के खिलाफ है। एमपी और छत्तीसगढ़ के मामले अलग हैं।
- सरकार: हम भी 27% आरक्षण के समर्थन में हैं और पद अनहोल्ड करना चाहते हैं।
22 जुलाई को हुई सुनवाई में सरकार ने तर्क दिया था कि छत्तीसगढ़ में जैसे राहत मिली है, वैसे ही एमपी को भी मिलनी चाहिए ताकि भर्ती प्रक्रिया पूरी हो सके। वहीं अनारक्षित पक्ष ने कहा कि छत्तीसगढ़ में एसटी आबादी अधिक है, इसलिए वहां का आरक्षण ढांचा अलग है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट किया कि अदालत ने कभी पद अनहोल्ड करने से नहीं रोका। सवाल यह है कि सरकार ने छह साल में ठोस कदम क्यों नहीं उठाए। कोर्ट का रुख यह संकेत देता है कि 23 सितंबर की सुनवाई इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद का अहम मोड़ साबित हो सकती है।
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अगर कोर्ट 13% पदों से होल्ड हटाने का आदेश देता है, तो हजारों चयनित अभ्यर्थियों को तुरंत नियुक्ति मिल सकती है। वहीं, ओबीसी समुदाय के लिए 27% आरक्षण लागू करने का रास्ता भी साफ होगा।