मध्य प्रदेश में 27% ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। सोमवार, 12 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से इस मामले में गंभीरता बरतने को कहा और 23 सितंबर से नियमित सुनवाई का आदेश दिया।
यह मामला लंबे समय से कानूनी पेंच में फंसा हुआ है। दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला किया था, लेकिन इस पर विवाद शुरू हो गया। 4 मई 2022 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए ओबीसी आरक्षण की सीमा को 14% तक सीमित कर दिया। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार और अन्य पक्षकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। तब से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी
12 अगस्त की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि इतने लंबे समय से मामला लंबित क्यों है और ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हो रही। कोर्ट ने कहा कि आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर देरी से न केवल नीतिगत फैसले अटकते हैं बल्कि इससे सामाजिक और राजनीतिक असंतोष भी बढ़ सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अब इस मामले को और लंबा नहीं खींचा जाएगा।
23 सितंबर से हर हफ्ते सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 23 सितंबर से इस मामले की नियमित सुनवाई की जाएगी, यानी हर सप्ताह इस पर बहस होगी और जल्द से जल्द अंतिम फैसला सुनाने की कोशिश होगी। इस दौरान सभी पक्षों को अपने-अपने साक्ष्य और तर्क समय पर प्रस्तुत करने होंगे।

याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देना संवैधानिक अधिकार और सामाजिक न्याय का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि यह कदम पिछड़े वर्गों को शिक्षा और नौकरियों में बराबरी का अवसर देगा, इसलिए इसे तत्काल लागू किया जाना चाहिए।
राज्य सरकार की दलील
राज्य सरकार का कहना है कि 27% आरक्षण के लिए सभी संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है। सरकार का मानना है कि ओबीसी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण बढ़ाना उचित है, लेकिन कानूनी अड़चनों के कारण यह लागू नहीं हो पा रहा।
राजनीतिक हलचल
यह मामला केवल अदालत में ही नहीं, बल्कि राजनीति के गलियारों में भी गरमाया हुआ है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने आरक्षण का मुद्दा चुनावी फायदा उठाने के लिए उठाया, लेकिन कानूनी तैयारी पूरी नहीं की, जिससे मामला कोर्ट में अटक गया। वहीं, सत्ताधारी दल का कहना है कि वे ओबीसी वर्ग के हक के लिए पूरी ताकत से लड़ रहे हैं।
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अब नजरें 23 सितंबर से शुरू होने वाली नियमित सुनवाई पर टिकी हैं। यह तय माना जा रहा है कि इस बार सुनवाई की रफ्तार तेज होगी और आरक्षण का मुद्दा जल्द ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा।